बाथरूम में बैठा प्राकृतिक अवस्था वाला आदमी भी मोबाइल की कीबोर्ड पर अंगुठे का प्रयोग कर के स्वच्छता अभियान का विरोध या समर्थन करता हुआ जल का दुरूपयोग न करने की नसीहत दे रहा है। कई तो यही से महंगाई बेरोजगारी घुसपैठ आदि पर अहम फैसले भी बैठे बैठे कर डालते है। ससुराल में जमंे घर जमाई बेवाक बताते है कि माॅ बाप की सेवा कैसे करनी चाहिए। मुन्ना भाई की तर्ज पर हाई स्कूल पास करने वाले स्पष्ट रूप से बता रहे है कि पद्म पुरस्कार या भरतरत्न किसे मिलना चाहिए । गिल्ली डन्डे में भी कभी न जीतने वाले धोनी को उपदेश देते मिल जायेंगे कि इसे गुरू ऐसे खेलना चाहिए था। लडकियों के छा़त्रावासों के इर्द गिर्द गिद्धों की तरह मंडराने वाले महान आत्माओं कों नारी सुरक्षा की चिन्ता से सुखते पाया जा सकता है। इसलिए महिलाओं की कम होती जनसंख्या से चिन्तित इन भद्रजनों ने
फेसबुक पर लडकियो के नाम से फेक आइडी बना कर इस समस्या का स्थाई निदान निकालने की अहैतुकी कृपा की है।
हमारे जैसे कवि टाइप के लोगों की भी सोसल साइट पर कमी नही है जो कलम और कविता से का्रन्ति लाने के लिए अपने को तुलसी कबीर के असली उस्ताद से कम नही मानते है। और लेखन के नाम पर आज यहाॅ कल वहाॅ लिखते रहते है। सलाद काटते समय अंगुलीमें हल्की खरोंच से माॅ की पल्लु पकड कर सिसक सिसक कर रोने वाले देश के लिए गरदन कटा देने की बात करते है। भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक, आआपा को बेवकूफ और कान्गे्रस को बेकार सिद्ध करना इनके बायें हाथ का उपक्रम है। काॅपी पेस्ट करने वाले निर्विकार भाव से दिन भर यही करते है। किसी की भी सामग्री ऐसे पेस्ट करते है जैसे इसके मूल बाप यही हों। पर असली सन्त होते है टैग करने वाले जब तक ये शुभप्रभात , आज का दिन मंगलमय हो, बधाई, ये लिख कर विधिवत चालिस पच्चास को टैग न कर दे क्या मजाल की सूरज पूरब दिशा को निकल जायें। कोई भी त्योहार इनके टैग से अनुमति लेने के बाद ही आ सकता है। हमेशा उधार का या जुगाड का चाय पान भिडाने वाले पाडे ईमानदारी से आम बजट से घर के बजट पर पडने वाले प्रभावों को फेसबुक पर क्रमवार गिनाते रहते है। फेसबुक पर का्रन्ति हो रही है। वाट्सएप्प पर ज्ञान बरस रहा है। इस का्रन्ति को नमन।
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