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पं धरीक्षण मिश्र |
बन्दना सरस्वती से
सुरसति हम के द बना, अइसन सुकवि प्रबुद्ध !
लिखल करीं हम सवर्दा छन्दगति यति शुद्ध !
छन्दगति यति शुद्धमति जस देवग्गणपति !
सत्संगति रति दे द दिन प्रति देविभ्भगवति !
चावस्सिरजति भाव ब्विरचति भूलभ्भरसति !
दोषध्धरसति मोदब्बरसति आवस्सुरसति !!
२
समधी के मरम्मत
ठनगन समधी नाधि के, बके अन्ट के सन्ट !
बेटिहा भेजले अन्त में लट्ठद्धर कुछ लन्ठ !
लट्ठद्धर कुछ लन्ठज्जबर गरज्जद्धरधर !
धद्धग्गरदन चच्चच्चटकन थत्थत्थप्पर !
गातल्लउरि पिटातस्सब सुधियातत्तनमन !
खातक्कवर सुहात ठ्ठहर भुलातठनगन !!
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