गंगा

तपसी भगीरथ के तप से हुई प्रसन्न
स्वर्ग छोड़ जो धरा पे आई वही गंगा है !
गोमुख से चली गंगा सागर को लहराती
देख जिसे मुक्ति इतराई वही गंगा है !
पुण्य को लुटाती धार अमृत बहाती नित
मति जहाँ डुबकी लगाती वही गंगा है !
शम्भु की जटाओं में जो उलझ निकल गयी
आज मेरे छन्दों में समाई वही गंगा है !

                        २

सुरसरि देवी तुम ब्रह्मा की कमण्डल से
भू पर उतर जग को संवार देती हो !
विष्णु के चरण रज लेकर पधार गयी
पातक पहाड़ शिर से उतार देती हो !
शिव की जटा से चन्द्र ज्योति भष्म भूति लिए
ताप त्रय शूल हेतु उपचार देती हो !
धर्म राज जब तक  पुण्य का करें विचार
तब तक गंगा तू करोड़ों तार देती हो !

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