ये बेईमान बादल

आषाढ़ मास के प्रथम दिन ही नभ में बादल को देखकर कालिदास के विरही यक्ष
को अपनी प्रेयसी की याद आई थी ,तब से आज तक यक्ष और बादल अखिल भारतीय
वियोगी नवयुवकों का ब्राण्ड एम्बेसडर बने हुयें है !अब तो सावन भी आ गया
,बादल भी दिखे किन्तु जन प्रतिनिधियों की तरह आश्वासन मात्र देकर चले गए
! अरे हाँ -पिछले दिनों तो टुटपुन्जिये नेताओं की तरह घटायें आकाश मंच पर
इकठ्ठी हुई थी !उनका सदाचार एवं ईमानदारी का गर्जन-तर्जन सुनकर प्रिया
विहीन न होते हुए भी हमारा मं डर गया था !इतना सदाचार तो स्द्ग्रिहस्त
बाबाओं के पास भी ढूढते रह जाओगे !
         सावन का सबको इंतजार है -किसान कभी मुहँ उपर उठाये हुए तो कभी
आस पास देख रहा है कि अब झमाझम पानी बरसे तो अगले जाड़े में बिटिया के
हाथ पीले कर सकूं बेइमान बादल न जाने कब बरसे !अधिकारी सोचता है कि इस
बार बाढ़ नहीं आई तो मंत्री जी को कौन सा मुहँ दिखाऊंगा !अंतर्राष्ट्रीय
फतिंगे आम आदमी के घरों में घूस पैठ करने की फ़िराक में है !किराये पर
विद्या दान देने वाले स्कूल कान्वेंटो के प्रबंधक छात्रों एवं अभिभावकों
की ओर आशा भरी नजरों से निहार रहे है !बस फैशनेबुल अत्याधुनिक युवतियों
की तरह बिजली नहीं कौंधी -वर्षा रानी नहीं आई !
        कालिदास से तुलसीदास तक ,ग़ालिब से मीर तकी मीर तक ..सबने वर्षा
बादल सावन पर मनो नहीं टनों लिखा है !जिससे साधारण पाठक पर बेहोशी का
दौरा पड़ सकता है !संक्षिप्त रूप में बयान दिया जा सकता है कि ऋतू वर्षा
का है ! हालाँकि ऋतुओं ने संहार भी बहुत किया है ! कालिदास का तो एक
ग्रन्थ ही ऋतुसंहार है
          सावन में मेंढक आज भी वही करते है जो तुलसीदास के ज़माने में
किया करते थे !बस कुछ नहीं करता तो केवल हमारा सरकारी तन्त्र ---जमुना
प्रसाद उपाध्याय के शब्दों में -
                 ये सियासी लोग यदि नदी के तट बस गए होते
                तो हमारे प्यासे होठ एक-एक बूंद पानी को तरस गए होते
               गनीमत है कि मौसम पर इनकी हुकूमत नही चलती
               वरना सारे बादल इन्ही के खेतों में बरस गए होते


    डॉ अनिल चौबे

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