डमरू घनाक्षरी (एक अमात्रिक छन्द )

डमरू छन्द
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घहर घहर घन गरजत नभ जब
चहकत खग तब डर कर दहशत।
पवन बहत सन उडत बसन फर
मदन अधर पर रस धर हरषत।।
करत जतन तन शठ हठ डट कर
दरस परस मन छन भर तरसत।।
लखत लखत तव अयन अनवरत
सजन नयन जल घन इव बरसत।।
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अचरज मत कर सहज भजन कर
धर धर कर भव पग धर सत सत।
हरत रहत अघ तम हरदम हर
मतलब करतब कर जग तरसत।।
तजत न मद पद भजत न फणधर
सहज कपट झट कर छल हरसत।।
पर बस रमत करत मन ठन गन
सजन ! नयन जल घन इव बरसत।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्टर अनिल चौबे जी
    आपने घनाक्षरी जैसे श्रेष्ठ छन्द का प्रभेद डमरु घनाक्षरी जैसे विलुप्तप्राय छन्द मे भक्तिभाव से ओतप्रोत अपने मनोभाव को भगवान भूतेश्वर की आराधना की है। घनाक्षरी जैसे श्रेष्ठ छन्द का प्रभेद डमरु घनाक्षरी जैसे विलुप्तप्राय छन्द को उज्जीवित रखने हेतु हम आपका आभार व्यक्त करते हैं।

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  2. नन्द किशोर तिवारी जी
    आप जैसे सहृदय द्वारा दिया गया प्रोत्साहन एवं उत्साहवर्धन हमें संजीवनी प्रदान करता है ! आपका हार्दिक आभार

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  3. बहुत सुन्दर, वाह वाहब। किन्तु सनातन छंदों में उर्दू शब्द मान्य नहीं मित्र।

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