घर में जब देवी देवताओं के साथ पूजा का कन्टेक्ट समाप्त हो जाता है तो माला फूल बची खुचीं हवन सामग्री को गंगा में फेंकने के लिए या तो फिर विभिन्न देवी देवताओं के मूर्ति विसर्जन के समय ही तो नौजवान गंगा किनारे पहुचतें थे इसी बहाने गंगा मईया से दरस परस हो जाता था और माॅ को भी लगता था कि हमारे नौजवान बेटे अभी उतना नालायक नही हुये है जितना इनके असली माॅ बाप समझते है। गंगा में मूति विसर्जन पर रोक लगने से सबसे ज्यादा आहत नौजवान वर्ग हुआ है। भारत एक उत्सवधर्मी देश है। नौजवान उत्सव का कोइ अवसर हाथ से निकलने नही दे सकते। इसी लिए तो घंटो लतियाये जाने पर भी स्कूल का मुँह देखना पाप समझने वाले भी सरस्वती पूजा में, बिमार माॅ के लिए दवा लाने में सौ बहाने करने वाले दुर्गा पूजा में और एकदम निकम्मे जन विश्वकर्मा पूजा में अत्यधिक भक्तिभाव से भाग लेते हैं। परिस्थितियों को कभी भक्ति भाव में बाधक नही होने देते नौजवान। मूर्ति विसर्जन यानी देवी देवताओं के विदाई का समय। कोमल हृदय वाले ये नौजवान विसर्जन के समय जितना दुखी होते है उतना तो कन्या के विदाई के समय उसका बाप भी नही होता होगा। आपने देखा होगा क्रान्तिकारियों की तरह सर पर लाल कफन बांधे , दिल को दहला देने वाले डीजे के साथ दुखी मन से सर्ट को कमर में लपेटे हुए, अर्द्ध नंगे बदन एक दुसरे पर गिरते पडते नाचते हुये पैदल पैदल चले जा रहे है। कुछ अति सम्वेदनशील तो सडक पर लोट कर नागिन की तरह तडपने भी लगते है। कुछ मौनधारी युवा जब विसर्जन की सह्य वेदना को घोट नही पाते तो लबे सडक पच्च पच्च थूकते जाते है आम लोग इसे गुटखा समझते है। मगर ये तो इनका गम है जो ये निगल नही पा रहे। कुछ का हृदय इतना जलता है कि मुंह से निकलते धुयें को साक्षात देखा जा सकता है। इनके नसों में जो आस्था का उन्माद दौडता है वो एक विशेष प्रकार के द्रव के चलते है जो दिखता नही है। बस उसका असर दिखता है।
मूर्ति विसर्जन से गंगा में प्रदूषण फैलता है यह तो एक बहाना है। शहर के सीवर और बडे बडे गन्दे नाले रोज गंगा में विसर्जित होकर क्या गंगा को प्रदूषित नही कर रहे ? कई सरकारी गैर सरकारी संस्थायें सफाई अभियाान के नाम पर बहती गंगा में रोज हाथ धो रही है। इनके हाथ लगने से भी गंगा प्रदूषित हो रही है। बरना आज तक कई सौ करोड रूपये गंगा सफाई के नाम पर खर्च हुये लेकिन क्या मजाल की एक रत्ती भी असर हुआ हो।
अब जब विसर्जन पर ही रोक लग गया है तो नौजवानों की धार्मिक आस्था के प्रदर्शन का क्या होगा ? विसर्जन जुलूश मे बनजे वाले शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी वाली निगुर्ण धारा के भजनों का क्या होगा ? शहर में साल भर मूर्ति स्थापना के नाम पर भैकाल बनाने वाली पूजा समिति का क्या होगा ? पूजा के नाम पर चन्दा का चर्वण करने वाले छुट्ट भय्ये युवा नेता का क्या होगा। शायद ही कोइ होगा जो नौजवानों के दर्द को समझ पाये।
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