मन की बात


 बहुत दिनों से मैं  भी ’’मन की बात’’ करना चाहता था क्या करूं घर में कर नही सकता और रेडियो पर करने की न अपनी औकात है न कोइ फायदा। सो आप से कर रहा हूॅं। जब से सोच रहा हूँ  तभी से मन में लड्डू फूट रहे है। व्यक्ति को हमेशा अपने मन की बात सुननी चाहिए। हालाकि कई बार मन की बात अधिक सुन लेने पर उसका असर तन पर होता है और तन टूट जाता है। ’’मन के हारे हार है मन के जीते जीत’’  मनः एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। पूरा विश्व भैतिकवादी है केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहाॅ अध्यात्म का महत्व है। इसलिए मेरे बहनों और भाइयों मन को सांसारिक गतिविधियों में लिप्त न रखें। आटा दाल तेल प्याज जैसी तुच्छ  नश्वर वस्तुओं में अपना ध्यान न लगायें। महंगाई इस देश की आत्मा सी है। यह अजर अमर है इसका रोना कदापि न रोयें । यह तो आज है कल थी और कल रहेगी भी। जैसे पुराने शरीर के जीर्ण शीर्ण हो जाने पर आत्मा नये शरीर को धारण कर लेती है ठीक उसी तरह पुरानी सरकार के चले जाने पर नई सरकार पुरानी सरकार की आत्मा को धारण कर लेती है अतः किसी प्रकार का संशय नही होना चाहिए। बिजली पानी सडक स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकतायें तो व्यक्ति को आलसी बनाने वाली है। हम तपस्वियों के वंशज है। हमें कदापि नही भूलना चाहिए कि हम आलरेडी विश्व गुरू है। हमें सोशल मिडिया फेसबुक ट्यूटर आदि पर अत्यधिक समय देना चाहिए ताकि हमें लाइक करने वाले और हमारे फालोवर्स की संख्या में बढोत्तरी हो सके। वरना हम इस मायावी संसार को कौन सा मुंह दिखाने लायक रह जायेंगे।
                           
                                 इधर पंचायत चुनाव की घोषणा क्या हुई गांवों में बहार जैसे आ गयी है। एक आदमी बिमार पड के देख ले बीस प्रधानी के उम्मीद्वार दवा करवाने को तैयार है। गाॅव का आदमी सोच रहा है। हे भगवान ! ये चुनाव का मौसम हमेशा के लिए क्यो नही होता है। प्रत्याशी ऐसे हाथ जोडे है। जैसे दिल्ली का वीआईपी डेंगू मच्छर के डर से जोडे हुये हो। दीवार फाॅंदने का जिनका ग्रामिण रिकार्ड था वो भी उमर की उतार में भाग्य आजमाने के लिए कमर कस चुके है। गाॅव का घीस्सू ओर हल्कू भी अब काफी समझदार हो चुके है। वो अपने एक वोट की कीमत समझ रहे है। अदम साहब के शब्दों में इन्हें मालूम है कि प्रधान की योजनाओं से इनकी झोपडी पर कोई असर नही होगा और शहर की सीध में जब प्रधान की कोठी बनेगी तो इनके लिए सूरज भी जरा तीरछे ही निकलेगा।
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. अनिल चौबे जी
    आपने अपने मन की बात की है यह तो नही मालूम किन्तु यह तो सभी के मन की बात लग रही है।एक बात भी सत्य है कि आदमी हर बार कुछ महंगाई के विरोध मे भी मत देता है लेकिन यह हर बार उल्टा ही दाव पड़ता है।सब जानते हुए भी आदमी न जाने क्यों महंगाई कम होने की आस लगाए बैठा रहता है जाबकि विभिन्न कारणों से यह संभव ही नही है।
    मूर्ति विसर्जन और नौजवानों का दर्द खूब समझा है आपने।यह शत प्रतिशत सत्य है कि पूजनोत्सवों मे विसर्जन के दौरान कुछ अधिक ही भगदड़ मचाते हैं ये युवक।किन्तु यह भी तथ्य है कि हमारे देश की नदियां तो शहरो के गन्दे ढोने वाले नालों से ही अधिक प्रदूषित होती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. डॉ. अनिल चौबे जी
    आपने अपने मन की बात की है यह तो नही मालूम किन्तु यह तो सभी के मन की बात लग रही है।एक बात भी सत्य है कि आदमी हर बार कुछ महंगाई के विरोध मे भी मत देता है लेकिन यह हर बार उल्टा ही दाव पड़ता है।सब जानते हुए भी आदमी न जाने क्यों महंगाई कम होने की आस लगाए बैठा रहता है जाबकि विभिन्न कारणों से यह संभव ही नही है।
    मूर्ति विसर्जन और नौजवानों का दर्द खूब समझा है आपने।यह शत प्रतिशत सत्य है कि पूजनोत्सवों मे विसर्जन के दौरान कुछ अधिक ही भगदड़ मचाते हैं ये युवक।किन्तु यह भी तथ्य है कि हमारे देश की नदियां तो शहरो के गन्दे ढोने वाले नालों से ही अधिक प्रदूषित होती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. नंदकिशोर तिवारी जी
    सादर नमन
    और
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. नंदकिशोर तिवारी जी
    सादर नमन
    और
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. डॉक्टर साहब टिप्पणी मेरी पसन्द आई आपको कोटिश: धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. डॉक्टर साहब टिप्पणी मेरी पसन्द आई आपको कोटिश: धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं