गंगा

तीन पग में ही तीनों लोक नाप लेनेवाले
वामन चरण कोई कोना चाहती हूँ मैं।
शबरी के द्वार जो गये थे खुद चलकर
उनसे लिपट कर रोना चाहती हूँ मैं।
अहल्या की भाँति प्रभु चरणों की लालसा है स्वर्ग ना तो पटरानी होना चाहती हूँ मैं।
जिन चरणों को कभी धोये थे निषादराज
उन्हें निज आंसूओं से धोना चाहती हूँ मैं।।

                       

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