हर धर्मान्ध चेहरा कार्टून है



फेंकू  पांडे का वाट्स एप्प पर मैसेज आया चलो पीके देखते है। हमने कहा पांडे  न हमने पीके देखी है न पीके देखेंगे। फेंकू  उवाच- गुरू हम पीके पिक्चर की बात कर रहे है सुना है धार्मिक भवना को ठेस पहुंच रही है।
        अब कौन समझाये पांडे  को कि जहाॅ आधुनिकता के इस दौर में सम्वेदनायें कब की मर चुकी है। भावना  जज्बात रिश्ते  सद्भाव अपने अर्थ को खो चुकें हैं। वहाॅ किस भवना को ठेस और आघात पहुंच रही है। आप पिक्चर को मनोरंजन की भावना से न देखकर धार्मिक भावना  से क्यों देखने जा रहे है। एक दार्शनिक ने लिखा है कि वास्तविकता यह है कि लोगों को उनके बारे में यदि सत्य भी बताना हो तो हास्य विनोद के माघ्यम से बतलाना चाहिए अन्यथा वो आपका कत्ल कर देंगें। वर्षो पुरानी बात अब सत्य हो गयी। शार्ली एब्दो पत्रिका को तो हास्य विनोद को ही माघ्यम बनाना बहुत भारी पड गया। व्यथित मन सोच रहा है कि एक कार्टून से  किसी धर्म को कितना खतरा हो सकता है एक पिक्चर से कितनी चोट पहुच सकती है। शायद उतनी तो कभी नही जितनी प्रतिक्रिया स्वरूप मानवता को पहुंची है।
               मेरी अपील है कार्टून बनाने वाले बडे कार्टूनिस्टों से सावधान ! पता नही आपका कौन सा छोटा सा कार्टून किस महान धार्मिक संगठन या व्यक्ति के विशाल भावना को आहत कर जाये और आप अभूतपूर्व कार्टूनिस्ट से कब भूत पूर्व हो जायें यह पता तब चले जब फोटो पर माला टंगी दिखे। आप कुरितियों विसंगतियों पर व्यंग्य कर के समाज सुधारने चले थे पता चला खुद सिधार गये। क्या जरूरत है मजहब की फटी चादर में अंगुली करने की। खामखाह धर्मिक लंगर की दाल में कंकर बीनने से क्या  फायदा। पेट भी नही भरेगा गर्दन भी कट जायेगी। हमने तो सरकारी साहित्यकारों को देखा है। सत्ताधीशों पर गीत गजल लिख मारो और लालबत्ती लो मजे करों। जुनियर नवनीतलेपन करेंगे उसका आनन्द अलग से । जेहाद के उन्माद से नंगे हुये पागलों को नंगा करने से क्या हासिल होगा।
        कोई धर्म बुरा नही है धर्ममान्धता बुरी है। धर्मिक उन्माद बुरा है। धर्म के नाम पर होने वाले हमलों की आंच में राजनीति का पापड सेंकना बुरा है। कोई भी मौलाना या महराज अपने भाषणों से जब सम्प्रदायिकता का दुर्गन्ध फैलाता है। तब चैनलो पर दिखया गया उसका चेहरा, अखबारों में छपा उसका चित्र धर्मान्धता के आइने में एक विकृत कार्टून जैसा ही लगता है। क्या समझे।

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