बसन्त तुम फिर आगये

न सरसों के फूल खिले, न कोयल कुकी, प्रेमिकाओं ने प्रेमियों के आगमन की सूचना देन े पर कौओं से सोने की कटोरी में दूध भात खिलाने का झूठा वादा भी नहीं किया और मेरे शहर में तुम फिर आ गये बसन्त ! पहले तो आम में बौर और मोैसम में मादकता लिए आते थे ! इधर कइ सालों से तेरे चाल चलन अच्छे नहीं दिखते अब सरकारी बजट के साथ महॅंगाई लिए आते हो ! अब तुम आ ही गए हो तो लंगोट लगाकर हम तुम्हारा शारीरिक स्वागत करने को तैयार खड.े हैं ! चूॅकि महॅगाई ने कपड़ो के दाम इतने बढा दिये है कि आम आदमी लंगोट से उपर सोचने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है ! तुम ऐसे ही बजट के साथ महॅगाई के सहचर बन कर आते रहे तो , सावधान ! एक दिन लोग बाग प्राकृतिक अवस्था में तुम्हारे सम्मान में खडे. मिलेंगेे ! बजट ने दाल, चीनी, तेल, रसोई गैस के दाम से लेकर रेल तक के किराये में बढोतरी किया है ! जरूर तुम पैदल-पैदल आये होगे ! ऋतुराज गुरू जरा सोचो उस विरहिणी का क्या होगा जिसके कन्त ने बसन्त में आने का वादा किया था और जिसेके पिया को रेलिया बैरी परदेश ले गयी थी !
                अधिकारियों का कर्मचारियों का भत्ता तो बढ जाएगा पर गाॅवों और शहरों में रहने वाले गरीब मजदूर और गरीब होके लाचार हो जायेगें ! तुम तो मुहॅ बाये बजट कन्धे पर उठाये चले आते हो जैसे बसन्तलाल सााव एक मुस्टंडे को साथ लिए उधारी मांगने चला आता है ! पता है सबरे सबेरे नाश्ते में बासी रोटी चाय में डुबो के खानी पड रही है । टोस्ट के लिए दोस्त भी घर आना छोड चुके हैं । लहसुन प्याज तरकारी से गायब होते जा रहे है जैसे नेताओं से ईमान ! मैं मजबुरी में वैष्णव होते जा रहा हूॅ । क्या-क्या बतलायें तुम्हें , महॅंगाई को कोसें, बजट को ,बसन्त को या अपने भाग्य को ! बसन्त तुम्हारे साथ आए इस बजट ने तो आम आदमी के घर का बजट बिगाड. कर रख दिया है । आम आदमी जब घर का बजट बनाता है तो पत्नी के लिए एक साडी बन्ध जाती है किन्तु सरकार जब बजट बनाती है तो आम आदमी की वहीं धोती खुल जाती है ।बजट लाया जाता है बसन्त अपने आप आता हैै ! बस अन्त,,,,,,,,,,,,हा हन्त तुम फिर आ गये बसन्त !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें