छब्बीस जनवरी इस बार स्वयं को कुछ उदास कुछ उपेक्षित सा महसुस कर रही थी। हाला कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी कांपती ठीठुरती हुयी अपने नियत समय पर ही आयी थी लेकिन एक दिन के लिए ही संविधान की दुहायी देकर सम्मान देने वाले स्वागतकर्ताओं का ध्यान छब्बीस जनवरी पर न लग के उस पर लगा रहा जो-
कोट और पैन्ट को धारे हुये तन साथ लिये है मिशेल जी बामा।
गावत है जय हिन्द को गान बखानत है प्रगति सरनामा।
देखत है गणतन्त्र परेड निहारत झांकियों को अविरामा।
पूछत केम छो देशप्रधान, बतावत आपन नाम ओबामा।
और सारे द्वारपाल जिसे अपलक निहारने को अधीर लग रहे थे। इतनी उत्सुकता तो उसके लिए कभी नही रही। गणतन्त्र दिवस की परेड में दुनिया के सबसे धनिक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को हथियार और झाकियां दिखाने से क्या फायदा दिखाना था तो मफलरमैन को बुलाकर दिखाते वही तो एक नमुना है अपने देश मे दिखलाने लायक। हथियार तो आदरणीय ने बहुत देखे है।
छब्बीस जनवरी ने जब सुना की राजधानी में पन्द्रह हजार सीसी टीबी कैमरे लगाये गये है तभी से सोच में पड गयी है कि जिसके लिए पुरी सरकार नतमस्तक खडी है आखीर इतना बडा आदमी क्या चुरा कर ले जा सकता है।
मेहमान के गुजरने वाले रास्ते से भीखारियों का हटाना उसे अच्छा लगा क्यों कि आगन्तुक की नजर यदि इनके छोटे छोटे कटोरो पर पड गयी तो हम जब उसके सामने बडा कटोरा फैलायेंगे तो कटोरे की साइज देखकर कहीं मुंह न फेर ले। वो तो अच्छा हुआ कि अतिथि ने अपने आप आगरा का कार्यक्रम रद्द कर दिया । वरना एक अपयश और माथे लगता। पिछली बार मुशर्फ को आगरा ले गये थे क्या फायदा हुआ बेचारा ठीक नही होसका।
जिस तिरंगे के लिए वीर सपूतों ने अपने मस्तक की बली चढा दी। उस तिरंगे के सम्मान में जिसे नतमस्तक होना स्वीकार नही है उस को इस देश में महामहिम कहलाने का अधिकार नही हो सकता है। जिनका सर तिरंगे के फहरने पर नही झुका उनके मरने पर यह अमर तिरंगा निश्चित नही झुकेगा। अपने हाथ पीछे छिपाये हुये अंसारी जी ने तिरंगे को सलामी नही दी। तो छब्बीस जनवरी को लगा कि गणतन्त्र अभी छियासठवें वर्ष में भी बांस पर ही लटका है। और बलिदानियों को लगा कि हम कैसे कैसे फालतु लोगों के लिए फांसी पर झूल गये। छब्बीस जनवरी धूमिल की पंक्तियां -
क्या आजादी तीन थके हुये रंगो का नाम है
जिसे एक पहिया ढोता है
या इसका मतलब कुछ और होता है। को दुहराती हुयी अगले साल फिर आने के लिए विवश होकर रात में ही चली गयी।
कोट और पैन्ट को धारे हुये तन साथ लिये है मिशेल जी बामा।
गावत है जय हिन्द को गान बखानत है प्रगति सरनामा।
देखत है गणतन्त्र परेड निहारत झांकियों को अविरामा।
पूछत केम छो देशप्रधान, बतावत आपन नाम ओबामा।
और सारे द्वारपाल जिसे अपलक निहारने को अधीर लग रहे थे। इतनी उत्सुकता तो उसके लिए कभी नही रही। गणतन्त्र दिवस की परेड में दुनिया के सबसे धनिक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को हथियार और झाकियां दिखाने से क्या फायदा दिखाना था तो मफलरमैन को बुलाकर दिखाते वही तो एक नमुना है अपने देश मे दिखलाने लायक। हथियार तो आदरणीय ने बहुत देखे है।
छब्बीस जनवरी ने जब सुना की राजधानी में पन्द्रह हजार सीसी टीबी कैमरे लगाये गये है तभी से सोच में पड गयी है कि जिसके लिए पुरी सरकार नतमस्तक खडी है आखीर इतना बडा आदमी क्या चुरा कर ले जा सकता है।
मेहमान के गुजरने वाले रास्ते से भीखारियों का हटाना उसे अच्छा लगा क्यों कि आगन्तुक की नजर यदि इनके छोटे छोटे कटोरो पर पड गयी तो हम जब उसके सामने बडा कटोरा फैलायेंगे तो कटोरे की साइज देखकर कहीं मुंह न फेर ले। वो तो अच्छा हुआ कि अतिथि ने अपने आप आगरा का कार्यक्रम रद्द कर दिया । वरना एक अपयश और माथे लगता। पिछली बार मुशर्फ को आगरा ले गये थे क्या फायदा हुआ बेचारा ठीक नही होसका।
जिस तिरंगे के लिए वीर सपूतों ने अपने मस्तक की बली चढा दी। उस तिरंगे के सम्मान में जिसे नतमस्तक होना स्वीकार नही है उस को इस देश में महामहिम कहलाने का अधिकार नही हो सकता है। जिनका सर तिरंगे के फहरने पर नही झुका उनके मरने पर यह अमर तिरंगा निश्चित नही झुकेगा। अपने हाथ पीछे छिपाये हुये अंसारी जी ने तिरंगे को सलामी नही दी। तो छब्बीस जनवरी को लगा कि गणतन्त्र अभी छियासठवें वर्ष में भी बांस पर ही लटका है। और बलिदानियों को लगा कि हम कैसे कैसे फालतु लोगों के लिए फांसी पर झूल गये। छब्बीस जनवरी धूमिल की पंक्तियां -
क्या आजादी तीन थके हुये रंगो का नाम है
जिसे एक पहिया ढोता है
या इसका मतलब कुछ और होता है। को दुहराती हुयी अगले साल फिर आने के लिए विवश होकर रात में ही चली गयी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें