कान्वेन्ट गये पढन रघुराई

गुरू के गृह पढने इस लिये जाया जाता था कि तत्कालिन व्यवस्था में शायद कान्वेन्ट नही हुआ करते थे। इस लिए प्रभु राम को भी पढने के लिए गुरू गृह जाना पडा था। अब तो थोडा अधिक खर्च करने पर गुरू खुद शिष्य के घर सदेह पधार जा रहे है। तब अध्ययन व्यवसाय नही हुआ करता था। जब से शिक्षा का व्यवसायिकरण हुआ है । अघ्ययन अघ्यापन एक धन्धा बन गया है, और धन्धा तो हमेशा लाभ के लिए ही किया जाता है। जहां खाली जगह देखो स्कूल खोल लो। समझ लेना किस्मत के दरवाजे खुल जायेंगे। बस वोर्ड पर अन्ग्रेजी मिडीयम लिखा होना चाहिए। फिर देखना सरकारी विद्यालयों के सताये हुए लोग ऐसे टुट पडेंगेे जैसे खोई हुई जवानी को शर्तिया वापस दिलाने वाले हकीम के पास गुप्तरोगी टुट पडते है। फिर ड्रैस में कमाओ, किताब काॅपी बेच के भिडाओ। दस महिने कान्वेन्ट चलाओ, चैदह महिनों का फीस लो। हा यार चैदह महिनों  का, दो बार टर्मिनल फीस भी तो बनता है। भारी भरखम फीस लेने से कान्वेन्ट का नाम भी ऊँचा होता है। कोई नही पुछेगा, किस को पडी है सब अपने अपने बच्चे को डाक्टर इन्जिनीयर बनाने में मस्त है आदमी बनाने की फिकर किसको है। बचपन बस्ते के बोझ तले दबा है और माॅ बाप फीस के कर्ज तले। दादा को भ्रम है उनका कल्कटर पोता इसी कान्वेन्ट से निकलेगा, दादी चाहती है उनकी आॅख का चश्मा बने या न बने पोता अभियन्ता जरूर बन जायें। बाप सोच रहा है हे भगवान, सुगर बल्डप्रेशर निय़िन्त्रत रहे तो एडमिशन फीस भर दूं। सरकार मार्च में क्लोजिंग करती है। अविभावक अपनी आवश्यकताओं को अप्रील में,,,,,,,,,,,,
           पत्नियां इसलिए अत्यधिक खुश रहती है कि कान्वेन्ट में पढने वाले उसके बेटे को ऊंट तक की अंग्रजी आती है जबकी पति को तेलचट्टे तक की नही आती। कान्वेन्ट अपनी अंग्रजी मिडीयम का बीन बजा कर सम्मोहित करता है लेकिन भैंस को तो अंग्रजो के जमाने से ही पगुराने की आज भी आदत है। कान्वेन्ट वाले सर जी,  गुरू जी की तरह विद्या का दान नही करते, ये विद्या ट्रान्सफर करते है इन्हे  मालूम है बहुत दान करने से आदमी एक दिन फकीर हो जाता है। फकीर होना आसान है लेकिन अमीर होना कठिन। सर जी कठिन काम करते है। इनकी शिक्षा आदमी को गदहा और गदहे को आदमी बनाने से रोकती है। कान्वेन्ट सर्वाधिक पैसा लेकर पैसा कमाने वाली मशीन बनाने के लिए कृतसंकल्प है। एकलब्य को फीस में अंगुठा देना पडा था आज एकलब्य के पापा फीस के लिए अंगुठी बेचकर आरहे है।

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