आॅफ सीजन में झक मारते हुए, बेकार बैठे बनिये की तरह हमनें अपने एकदम खाली दिमाग का उपयोग स्मार्ट सीटी की तरह स्मार्ट बनाने में किया और अकबरी लहजे में धर्म पत्नी को निहायत ही बेतुका आदेश देते हुए कहा कि प्रिये, सरकार की तरह तुम भी अपने धर का एक साल का रिपोर्ट कार्ड पेश करो। मानो बेगम इसके लिए पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी। तीन सौ पैसठ पन्नों की फाइल मुंह पर मारते हुए बोली। लो बैठ कर बांचो। तुम्हें क्या पता बीबी का महत्व, जिनके पास नही है उनसे पूछो । उनको मन की बात रेडियो पर करनी पडती है। नही पता तो पुछो अपने छप्पन इन्च के सीने से हां नही तो,,,,,,,,
बहरहाल जो एक साल की रिपोर्ट कार्ड सामने पडी है वो आप सभी के साथ शेयर कर रहा हॅू। साल भर में साफ सफाई के नाम पर सौ दिनों तक घर में झाडूमार संस्कृति को मजबुत करने का असफल प्रयास किया गया है। प्रमाण के रूप में मोबाईल मे झाडूयुक्त सेल्फी मौजूद है।जिसे देखकर ऐसा लगता है कि इस झाडू से औरे इस मुंह से तो सफाई कत्तई नही हुई होगी। अपनी कक्षा में प्रायः नीचे से दशवाॅं स्थान पाने वाला पुत्र रिपोर्ट कार्ड में पैंतीस प्रतिशत अंक प्राप्त कर के नीचे से तीसरा स्थान पाया है। पुछने पर पता चला कि शेष पैंतीस प्रतिशत सब्सीडी से मिल जायेगा। पडोसी के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के चक्कर में, कई बार पडोसी के सारे अनैतिक कुकृत्यों को नजर अन्दाज कर दिया गया है। सीमा रेखा लांघने को तत्पर दुर्दान्त पडोसी को भी चाउमीन दिखा कर मनाने की कोशिश की गयी है। जनता की तरह अबोध पति के पाकेट पर हाथ साफ करके संचित किये गये धन के लिये बैंक में एक खाता भी खुल गया है। जिसे संचित धन योजना का नाम दिया गया है। अपने पक्ष को मजबूती के साथ रखने के लिए ससुराल से कई भाषणबाज सालों को निमन्त्रित किया गया है। जो अपनी लच्छेदार बोली से पत्नी के सदकर्मो को पुरे कुनबे के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। छोटे भाई की शादी में गिफ्ट मिली साडी को निलाम कर दिया गया था, और प्राप्त रकम से एक सलवार सुट बन गया है। जो ससुराल गमन में काम आता है। प्रधानमन्त्री के विदेश गमन की तरह ससुराल गमन पर होने वाले अन्य खर्चे का इस रिपोर्ट में भी कोई जिक्र नही है। सास ससुर को भी धारा तीन सौ सत्तर की तरह एक किनारे पर रखा गया है। एक साल के इस रिपोर्ट कार्ड में पति बेचारा राम मन्दिर की तरह खुद को उपेक्षित महशुस कर रहा है। फिर भी पत्नी सरकार की तरह खुश और पति जनता की तरह आशान्वित है।
वाह वाह अनिल जी।
जवाब देंहटाएंकागज और कर्म क्षेत्र की बारीकियों को बहुत ही निपुणता से परोसा गया है। स्वाद आ गया। कागज को कागज की भाषा में, कर्म को कर्म की भाषा में और दिखावे को दर्शनीय भाषा में जवाब। आपकी लेखनी बात कर रही है मान्यवर, आप बोलते रहें (लिखते रहें) सही कानों तक पहुँचने तक।
आभार उत्साह वर्धन के लिए
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