मैं नहीं लिखता
किसी के पायल की झंकार पे
गेसुओं पे रूखसार पे,गम के आँसू और
हुश्न का दीदार नहीं लिखता
काजल कपोल और कंगना
गोरी का साजन और साजन का
अंगना नही लिखता
झूठ की चौखट पर घुटने टेकता हुआ
सच जब लहूलुहान होकर परेशान दीखता है
चन्द सिक्कों में किसी का ईमान बिकता है
मैं तब लिखता हूँ ,,,
2
जब कोई नौजवान पढ़ने-लिखने का
गुनाह करता है
बेरोजगारी से तंग आकर
आत्मदाह करता है
अर्जित डिग्रीयों से जब चिता सजाई जाती है
नौकरी के लिये आवेदन की गयी अर्जियों से
उसमें आग लगायी जाती है और
तथाकथित जननायक जब
रजनीति की रोटी सेकता है
भगवान भी इस दारुण दृश्य को
मौन होकर देखता है
असहाय बाप की बुढ़ापे की लाठी जब
एक झटके में टूट कर हो जाती है चूर
तब मैं जरूर लिखता हूँ ,,,,,,
3
साठ परसेंट बालू और तीन परसेंट सीमेंट से
ठेकेदार जब सरकारी निर्मार्ण करा लेता है
तो ठेके का चालीस परसेंट चीफ इंजीनियर को
देता है
नब्बे वर्ष चलने वाला पुल
जब उद्घाटन के दिन टूट जाता है
कत्ल का गुनहगार अदालत से
जब बाइज्जत छूट जाता है
सिर पर
गिट्टी बालू ढोती हुई युवती के
फटे हुए वस्त्र से झाँकती हुई बेवसी को
देखकर बिगडैल बाप के मनचले बेटे
का मन मचलता है
सरला और रधिया के पेट में जब
समजावाद पलता है
और जब स्थानीय प्रशासन की आँखों में
दिखाई देता है सुबिधा शुल्क का शुरुर
तब मैं जरूर लिखता हूँ
4
इसलिए केवल कोरी कल्पनाओं से
जलती है मेरी कविता
व्यवस्था परिवर्तन को आग
उगलती है मेरी कविता ...

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