सत्य घटना पर आधारित एक बहुत मजेदार लतिफा है जिसे तमाम फर्जी कवि रिमिक्स कर के अपने अपने फर्जी कौशल के आधार पर सुनाते है। कल लतिफा दुखी मन से आपबीती बताने लगा। एक विद्यालय निरिक्षक साहब, पठन पाठन व्यवस्था का निरक्षण करने के लिए किसी प्राथमिक विद्यालय में पहूँचे। सात आठ विद्यार्थी नुमा बालकों को पेड के निचे बैठे देखकर एक बालक से पूछ बैठे कि देश का प्रधानमन्त्री कौन है बताओ। लडका तपाक से बोला हमें क्या पता, हम तो भैंस चरा रहे थे मास्टर साहब ने कहा कि बडे साहब आने वाले है। चलो थोडी देर के लिए क्लास में बैठ जाओ, बाद में सबको पाॅंच पाॅच रूपये मिलेंगे। अब आप बताओ पैसे आप दोगे या मास्टर साहब। निरिक्षक मास्टर की तरफ देखकर बोले सारे विद्यार्थी फर्जी। मास्टर साहब हाथ जोडकर कहने लग,े साहब असली मास्टर तो मैं भी नही हूॅ। यहाॅ हमारे बडे भाई असली मास्टर है वो एक मुकदमे के सिलसिले में शहर गयें है। आप आने वाले थे तो,,,,इतना सुनते ही साहब गुस्से से लाल पीले होते हुए प्रिन्सिपल के कक्ष की तरफ गये और प्रिन्सिपल को हडकाने लगे। ऐसे ही विद्यालय चलता है, एक भी विद्यार्थी असली नही, अध्यापक असली नही, बताओ। प्रिन्सिपल अत्यन्त विनम्र भाव से बोला हुजुर नाराज न हो असली तो मैं भी नही हूं। दरअसल मेरे पूज्य पिता जी असली है। वो बहन की शादी के लिए लडका देखने गये है और ये दस हजार की नोटो की गड्डी दिये है तथा उन्होने ये भी कहा है कि यदि बडे साहब इधर से गुजरे तो उन्हे ससम्मान थमा देना। विद्यालय निरिक्षक महोदय किसी क्षेत्रिय पार्टी के विद्वान प्रवक्ता की तरह अति गम्भीर मुद्रा में बोले। चलो वो तो गनीमत है कि मैं आया हूॅ यदि असली वाला आया होता तो इतने पर कदापि नही मानता।
लेकिन शायद साहब को ध्यान रहता तो समझ गये होते कि जहाॅ विद्यार्थी फर्जी, मास्टर फर्जी, प्रिन्सिपल फर्जी, वहाॅ नोट कैसे असली हो सकते है।
जिस देश में जाति फर्जी, वोटर फर्जी, राशन कार्ड फर्जी, यहाॅ तक कि रोग डाॅक्टर, आधार अकाउन्ट, हस्ताक्षर, एन्काउन्टर तक फर्जी होते है। वहाॅ डिग्री का फर्जी होना बहुत बडी बात नही होनी चाहिए। बडी बात यह है कि असली ईमानदार पार्टी के कानुन मन्त्री की डिग्री फर्जी है। दिल्ली को अभी स्वतन्त्र राज्य का दर्जा प्राप्त नही है जब आप केन्द्र के अधिन है तो यह फर्जीपना करने की स्वतन्त्रता कैसे मिल गयी। जब इस देश में अंगुठा छाप मुख्यमन्त्री बन सकते है तो मन्त्री बनने के लिए डिग्री की क्या जरूरत थी। अब तो जिते जी डिग्री और मन्त्री पद दोनों तोमर गया। असली डिग्रीधारी नौजवान तो रोज बेरोजगारी की चक्की में अपनी जवानी थोडा थेाडा पिस रहा है या तो फिर रोजगार दफ्तरों का आये दिन चक्कर लगाते लगाते चप्पल के साथ अपनी लम्बाई घिस रहा है। शायर कुंवर जावेद के शब्दों में सच्चाई यह भी है कि-
नेताओं को घर पे बुलाना छोड दिया
सांपो को अब दूध पिलाना छोड दिया
बाप की डिग्री को घुन लगते देखा तो
बच्चे ने स्कूल का जाना छोड दिया।।
आपको आम आदमी पार्टी से कोई दुश्मनी है क्या? दूसरे पार्टियों मे भी तो हैं फर्जी खोजिए और उनपर भी लिखिए।
जवाब देंहटाएंसुनील कुमार पाण्डेय जी
जवाब देंहटाएंहमें किसी पार्टी से कोई मतलब नही है बस फर्जीपना से दुश्मनी है ! और हमारी तो सहानुभूति है तोमर जी से
उनको डोगरी की क्या जरुरत थी मंत्री बनने के लिये ! चपरासी के लिये डिग्री अनिवार्य है ! बेचारे झूठ मुठ सत्यवादी पार्टी पर दाग लगा दिये