महंगाई और टैक्स दोनों ऐसी अप्सरायें है जो जनता की नीन्द हराम करने के लिए सरकार रूपी इन्द्र के इशारे पर नाचती है। और सरकार को खुश कर देती है। जैसे आप ससुराल में घर जमाई है तो अगल बगल के साले ससुरों से, सर्बिस वाले सरकार से, व्यपार वाले एक्साईज से, तथा अबोध पति अपनी इकलौती पत्नी से बैर नही कर सकता वैसे ही जगत में टैक्स विधाता से वैर नही किया जा सकता। टैक्स किसी भी तरह के हो सकते है इस पर आश्चर्य करना बेवकुफी से ज्यादा कुछ भी नही है। सर्बिस टैक्स पर हाय तौबा मचाना आपको शोभा नही देता। जब इन्गलैन्ड के राजा विलीयम पीटर मर्दो के बीग पहनने पर टैक्स लगा सकते है। रूस के पीटरर्यकुम खिडकियो की संख्या पर टैक्स लगा सकते है और तो और शादी की उम्र हो जाने पर कुॅआरा रहने पर रोम में जूलियस सीजर और मुसोलनी इटली में भारी टैक्स लगा सकते है तो क्या हमारे भारतीय शासक इतने गये गुजरे है कि सर्बिस टैक्स भी नही लगा सकते।
हम जनता के हित और सरकार के फायदे को ध्यान में रखते हुये कुछ सर्वथा अलौकिक टैक्स लगाने का अमुल्य सुझाव सरकार को बिना मांगे दे रहे है। इसको लागु करने पर सरकार के खजाने में अक्षय बढोत्तरी होगी। और जनता चूं तक नही करेगी। धरना धरने पर टैक्स- किसी भी तरह के राजनैतिक या सामाजिक आन्दोलनों को लेकर धरना धरने वाले इस टैक्स के दायरे में आयेंगे। इस टैक्स को भरते समय धरना धरने का उद्देश्य, विरोधी वयान और नारे बाजी की मात्रा का ईमानदारी के साथ उल्लेख करना आवश्यक होगा। सरकार को फायदा यह होगा की सभी विरोघी विपक्षी पार्टियां इस टैक्स के दायरे में आ जायेंगी।
भाषण पर टैक्स- फालतु के उबाउ और बोझिल घटिया भाषण देने वाले लोग इस टैक्स के दायरे में आयेंगे। यदि अल्पसंख्यक प्रजाति का व्यक्ति भडकाउ भाषण देता है तो टैक्स भरते समय बीस प्रतिशत छुट दिया जायेगा। सिर्फ जमाउ भाषण में आश्वासन देकर काम निकाल लेने वाले सज्जन इस टैक्स के दायरे में नही होंगे।
चरण चुम्बन और चम्चई पर टैक्स- इस देश में दण्डवत लेटकर चरण चुम्बन और चम्चई की परम्परा वर्षेा पुरानी है।
कर्मचारी साहब की, साहब बडे साहब की, बडे साहब लीडर की और लीडर हाईकमान की करता है। यह परम्परा क्रमशः फुलती फलती जा रही है इस पर टैक्स लगा कर सरकार अपना पीठ थपथपा सकती है । बडे बडे सम्मान और पुरस्कार पाने वाले टैक्स देने दाता होगे। सलाह और सुझाव तो और है लेकिन सरकार ने अगर इस पर भी टैक्स लगा दिया तो,,,,,,,?
टैक्स जैसे संवेदनशील और सर्वजन कष्टकारक विषय पर सहज शब्दों में तीखे व्यंग्य के लिए धन्यवाद अनिल जी।
जवाब देंहटाएंअगर टिप्पणी जैसे कर्मों पर टैक्स लग भी जाए तो हम सरकार के मंसा का सम्मान करते हुए भी टिप्पणी करते रहेंगे।
भाई जी हार्दिक आभार
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