और तेरी ज़ुल्फ़ में ख़म' हो तो ग़ज़ल होती है

हज़ल

इक दवात' एक क़लम' हो तो ग़ज़ल होती है
 
जब ये सामान बहम' हो तो ग़ज़ल होती है 

मुफ़लिसी' इश्क़, मरज़' भूक, बुढ़ापा, औलाद 
दिल को हर क़िस्म का ग़म हो तो ग़ज़ल होती है 

भूत आसेब 'शयातीन' अजम्बह' हमज़ाद' 
इन बुज़ुर्गों का करम हो तो ग़ज़ल होती है 

शे'र नाज़िल' नहीं होता कभी लालच के बग़ैर 
दिल को उम्मीदे-रक़म' हो तो ग़ज़ल होती है 

तन्दरुस्ती भी ज़रूरी है तग़ज़्ज़ुल' के लिए 
हाथ और पाँव में दम हो तो ग़ज़ल होती है 

पूँछ कुत्ते की जो टेढ़ी हो तो कुछ भी न बने 
और तेरी ज़ुल्फ़ में ख़म' हो तो ग़ज़ल होती है 

सिर्फ़ ठर्रे' से तो क़तआत' ही मुमकिन हैं 'फ़िगार' 
हाँ, अगर व्हिस्कि-ओ-रम हो तो ग़ज़ल होती है
         
( दिलावर फ़िगार )

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