मजदूर को सपने कहा आते है हुजूर



क्या कहा आपने मजदूर अपने सपने की आहूति देता है तब जाकर अन्य लोगों के सपने पूरे होते है। सरकार गुस्ताखी माफ करें। मजदूर वो होता है जो मजे से दूर होता हैै। आमतौर पर जो मजदूर होता है वह पहले तो सपने देखने की हिमाकत  ही नही करता क्यों कि मजदूर के सपने पूरे होने के लिए नही होते। आप ही बतायें भला कौन ऐसा मजदूर होगा जो मजदूरी छोडकर पहले सपने देखे फिर उन देखे हुए सपनों की आहुति देकर किसी दूसरे के सपने पूरे करे। मानो मजदूर मजदूर न हुआ लालकृष्ण आणवानी हो गया। साहब जी ! मजदूर जन्म से मजदूर पैदा होता है और जब तक मर न जायें मजदूर ही रहता है। जागते हुए सपने देखना तो मुहावरा है दरअसल सचमुच के सपने देखने के लिए कम्बख्त नींद आनी बहुत जरूरी है और ये निद्रा महारानी भी तभी आती है जब पेट भरा हो। वरना खाली पेट तो जम्हाई भी नही आती। हमारे एक मित्र कहा करते है कि किराये के कमरे में सपने भी किराये के आते है। अब आप सोचिये जो दिन भर मजदूरी कर के फुटपाथ पर सो जाते है उनको सपने किस तरह के आते होंगे। किसी चबुतरे पर मौसम की मार सहने के बाद सुबह उठने पर सबसे पहले अपने बच्चों के लिए शाम की रोटी की चिन्ता सताने लगती है बेचारा सपने की आहुति देने के पहले रोटी का जुगाड तलाशने निकल पडता है। मजदूर कठिन परिश्रम के बाद, घर वापसी पर कभी कभी बच्चों से नजरे मिलाने से भी कतराने लगता है। मुनव्वर राणा कहते है-
शहर की फिरकापरश्ति को वबा खा जाती है।
ये बुजुर्गो की कमाई दासता खा जाती है।
अपने घर में सर झुकाए इसलिए आता है वो
इतनी मजदूरी तो बच्चों की दवा खा जाती है।।
ये सच है कि ताजमहल, अजन्ता, एलोरा, ताज होटल से लेकर संसद भवन तक ये सब इन्ही मजदूरो के खून पसीने से बने है लेकिन ये कभी इनके सपने में नही आते। इनके सपने में आती है रोटी। जिसकी आहूति ये अपने बिमार लाचार परिवार को जीवित रखने के लिए देते है। जिनके घर के चूल्हे कई कई दिनों तक ठण्डे पडे रहते  हो, भगोना खाली रहता हो, उनके सपने कितने नशीले होते होगें। इन सूने आॅखों के सपनो की आहूति जो लेती होगी वो आॅखें कितनी नशीली होगी। मजदूर इतना भोला होता है कि वह किसी विकास के विषय में ठीक से नही जानता। वह रैली में भीड के रूप में मिलता है। मंचो कों सजाने का काम करता है जिस पर से बडे बडे हुजूर अखबारों में फोटो छपवाने के लिए भाषण देते है। मजदूर दिन भर की मजदूरी ठीक से देख नही पाता वो सपने क्या खाक देखता होगा। इसके के विषय में अदम गोण्डवी कह चुके है कि-
कि नंगी पीठ हो जाती है जब हम पेट ढॅकते है
मेरे हिस्से की आजादी भिखारी के कबा सी है।
कभी तकदीर की गर्मी से चूल्हा जल नहीं सकता
यहाॅ वादों के जंगल में सियासत बेहया सी है।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. अनिल चौबे जी
    जिन्हें केवल बोलने की आदत होती है वो शर्मो हया छोड़कर केवल बोलते हैं और वास्तविकता से वे कोशों दूर होते हैं।कुछ ही दिन पहले की तो बात है एक संस्था के कार्यक्रम मे कुछ पक्षी और विपक्षी माननीयों ने पहले कचरे को डलवाया फिर कैमरे के सामने झाड़ू लगाते हुए फोटो खिचवाए ।बेचारी मीडिया को भी उसी मेसे कुछ चाहिए अत: दिखावे के तौर पर उसने भी न्यूज चलवाये पर उससे किसे फयदा हुआ भगवान जाने।ये लोग भला मजदूरी के बारे मे और मजदूरों के हकीकत को क्या जानेंगे पर उस पर बोलेंगे अवश्य।ताजमहल आदि जिनका जिक्र आपने किया है उनके बनाने वाले लोगों के तो झूठी शान के लिए रोजी रोटी कमाने का दरवाजा तक ये बन्द कर देते हैं।आपको इस बात के लिए धन्यवाद है कि आपने बड़ी कठोर और कारुणिक वास्तविकता का गहन अध्ययन कर विचारार्थ प्रस्तुत किया है।

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  2. डॉ. अनिल चौबे जी
    जिन्हें केवल बोलने की आदत होती है वो शर्मो हया छोड़कर केवल बोलते हैं और वास्तविकता से वे कोशों दूर होते हैं।कुछ ही दिन पहले की तो बात है एक संस्था के कार्यक्रम मे कुछ पक्षी और विपक्षी माननीयों ने पहले कचरे को डलवाया फिर कैमरे के सामने झाड़ू लगाते हुए फोटो खिचवाए ।बेचारी मीडिया को भी उसी मेसे कुछ चाहिए अत: दिखावे के तौर पर उसने भी न्यूज चलवाये पर उससे किसे फयदा हुआ भगवान जाने।ये लोग भला मजदूरी के बारे मे और मजदूरों के हकीकत को क्या जानेंगे पर उस पर बोलेंगे अवश्य।ताजमहल आदि जिनका जिक्र आपने किया है उनके बनाने वाले लोगों के तो झूठी शान के लिए रोजी रोटी कमाने का दरवाजा तक ये बन्द कर देते हैं।आपको इस बात के लिए धन्यवाद है कि आपने बड़ी कठोर और कारुणिक वास्तविकता का गहन अध्ययन कर विचारार्थ प्रस्तुत किया है।

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  3. आदरणीय तिवारी जी
    आज आपकी टिप्पणी ने निःशब्द कर दिया।
    प्रणाम

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  4. जिस दिन मजदूर की आँखों में सपने पलेंगे, उस दिन बादशाहों को नींद नही आएगी।

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