लोग कैसे हो गये न जाने इस भारत के
आरत पुकारत है तान कर सो गये।
सो गये जगाने वाले नैतिक पतन हुआ
धर्मरथ रथी और सारथी भी खो गये।
खो गये लोलुपता में त्याग तप बलिदान
मनुज दनुज बन विष वृक्ष बो गये।
बो गये बबूल किन्तु चाहते सरस आम
राम धरा धाम के ये लोग कैसे हो गये।।
आरत पुकारत है तान कर सो गये।
सो गये जगाने वाले नैतिक पतन हुआ
धर्मरथ रथी और सारथी भी खो गये।
खो गये लोलुपता में त्याग तप बलिदान
मनुज दनुज बन विष वृक्ष बो गये।
बो गये बबूल किन्तु चाहते सरस आम
राम धरा धाम के ये लोग कैसे हो गये।।
सम सामयिक गंभीर व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंसमाज को शीशा दिखाने के लिए साधुवाद डॉ अनिल
बो गए बबूल किंतु चाहते सरस आम,,,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे अनिल जी...
बढिया रचना,,,,
रिंकी पाण्डेय जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
नमन