सिंघावलोकन

लोग कैसे हो गये न जाने इस भारत के
आरत पुकारत है तान कर सो गये।
सो गये जगाने वाले नैतिक पतन हुआ
धर्मरथ रथी और सारथी भी खो गये।
खो गये लोलुपता में त्याग तप बलिदान
मनुज दनुज बन विष वृक्ष बो गये।
बो गये बबूल किन्तु चाहते सरस आम
राम धरा धाम के ये लोग कैसे हो गये।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सम सामयिक गंभीर व्यंग्य...

    समाज को शीशा दिखाने के लिए साधुवाद डॉ अनिल

    जवाब देंहटाएं
  2. बो गए बबूल किंतु चाहते सरस आम,,,

    बहुत अच्छे अनिल जी...
    बढिया रचना,,,,

    जवाब देंहटाएं
  3. रिंकी पाण्डेय जी
    हार्दिक आभार
    नमन

    जवाब देंहटाएं