महंगाई गरीब की हांडी में दाल नही गलने देती। बीबी बच्चों की फरमाइसें आम आदमी को गदोरी में सुर्ती तक नही मलने देती। फैशन नौजवान की आॅखों में स्थाई रूप से कोई एक सपना पलने नही देता। और ये सांसद संसदीय कार्यवाही को चलने नही देते। कार्यवाही स्थगित है जी। जो पक्ष में थे आज विपक्ष में है। जब ये सत्ता में थे तो विपक्ष वाले संसद की कार्यवाही चलने नही दिये थे आज ये विपक्ष में है अतः इनका नैतिक धर्म बनता है कि संसद की कार्यवाही ये भी चलने न दें। अब आप को कैसे बतलायें जी, जब मानसून स़त्र में बाहर बरसात हो रही हो और अन्दर गर्मागरम बहस तो इस मौसम में सदन की कार्यवाही स्थगित हो जाने पर कैन्टीन में सब्सीडी के पकौडे खाने का अपना एक अलग आनन्द होता है।
संसद भवन में सभा की अघ्यक्ष भी घर परिवार की उस लाचर बुढिया की तरह होती है जिसकी इज्जत तो सारी बहूए करती है लेकिन उसकी सुनता कोई नही है। इतने सुहाने मौसम में कोई माइक तोडे, हाथापाई करे, बिल फाडे गाली गलौज करे तो इसको मौसम का दोष मानना चाहिए न की माननीयों का। और इस मौसमानुकूल स्वच्छन्द आचरण के लिए पक्ष विपक्ष दोनों को धन्यबाद का पात्र समझना चाहिए। इस स्थिति के लिए इन्हे नहीं खुशनुमा मौसम को दोषी मानना चाहिए। संसदीय गतिविधियों के जानकार एक बुद्धिजीवी से इसके बारे में जानना चाहा तो बोले कि यह प्रश्नकाल नही है और इस शून्य काल में मैं कोई उत्तर नही देता। कभी कभी ऐसा लगता है कि पैसठ वर्षो में संसद को गठिया हो गया है जिसके चलते इसे चलने में परेशानी होती है। पिछले कई सालों से ऐसे ही रूक रूक के लंगडा के चल रही है। इसकी अपनी कोई चाल नही है। जब सांसद
चलाते है तो चलती है नही तो बैठ जाती है। भले देश बैठ जाये ये चल नही सकती। कितनी जिम्मेदारी है इन सांसदो के उपर पहले करोडो की पूंजी लगाकर चुनाव जीते और जब जीत कर सदन पहूचें तो काम क्या मिला सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलने देने का। घर में बीबी की सुनते सुनते तंग होकर इतना बडा इन्वेस्ट किये सब बेकार चला गया। जहाॅ पहूचे वहाॅ भी एक महिला की सुनते रहो।
वो क्या है कि प्रधानमन्त्री जी सुने उन्होंने घर में कभी नही सुनी कृपया बैठ जाइये। आप भी बीबी से एक कप चाय की फरमाइश किजीये जबाब मिलेगा । शून्यकाल है कार्यवाही स्थगित है जी।
डॉ. अनिल चौबे जी
जवाब देंहटाएंकई दिनों से आपका ब्लाग पढा नही था कारण बहुत बड़ा नही है समय की बात है पढ़े बिना रह भी नही सकते।कार्यवाही स्थगित है जी मे संसद मे बैठे बन्दरों की उछल कूद का वर्णन किया है वह यू ही नही है।कोई अपनी गलती छुपाने के लिए विपक्ष को संसद न चलने देने दोषी सिद्ध करने मे लगा है तो विपक्ष भी पहले का किया उजागर ना हो जाय इसके मद्देनजर संसद ही नही चलने दे रहा।
मैं बुद्धिजीवी मच्छर हूं मे माननीयों तथा बुद्धिजीवियों का घिनौना चरित्र ही सामने आता है।उनकी मच्छर से तुलना सत्य ही है क्योंकि सदियों से मच्छर को धूर्तता और दुष्टता का प्रतीक माना जाता रहा है।
अगर गदहे नही होते तो उनके न होने से क्या विकट संकट संभव है यह आपही बेहतर जानते सकते हैं।
२८ जुलाई को प्रकाशित भारत के भगोड़े करोड़पतियों व्यंग्य धनपशुओं के हाथों का खिलौना बने भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की लोलुपता तथा लचर व्यवस्था का हकीकत है।
देश के गौरव हमारे पूर्व राष्ट्रपति कलाम जी के व्यक्तित्व और विस्तृत उपलब्धियों का वर्णन करके श्रद्धांजली प्रदान किया है युक्तियुक्त है।
भाई
जवाब देंहटाएंतिवारी जी
प्रणाम
ब्लॉग पढ़ने के लिए आभार
3 लेखों की टिप्पणी एक जगह चमत्कार
बहुत सुन्दर भाई साहब
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