मैं मच्छर हूॅ। जी हाॅ बस आप जो समझ रहे है वही। जब मुझे किसी कलमकार ने अपने लेख का विषय नही बनाया तो झकमार के भनभनाना छोड कर मैं खुद अपने विषय में लिखने बैठ गया। मैं मच्छर हूॅं फिर भी चाहता तो अपनी इस रचना का किसी लोकल टाइप के विद्वान से समीक्षा करवा कर भी छपवा सकता था। लेकिन इससे स्वरचित रचना की ऐसी तैसी हो जाती इसलिए मैने रिस्क न लेने में ही रचना की भलाई समझी। सो मूल रचना आपके सामने है। हम कब से इस धराधाम पर सशरीर अवतरित होकर भनभन कर रहे है ईस्वी सन ठीक ठाक हमें या हमारे पूर्वजों को याद नही है। हमारा धरती पर आना अनुसन्धान का विषय है। बुद्धजीवी की तरह हम भी परजीवी नुमा जीव है। लेकिन हम मच्छरों में कोई धर्म सम्प्रदाय उच नीच भेद भाव नही है सब के सब मच्छर ही है। और आगे भी रहेंगे। हम अशिक्षित है लेकिन किसी धर्म गुरू के बहकावे में कभी नही आते। हमारा एक ही काम है खून चूसना। ये कला हमें खानदानी रूप से विरासत में मिली है जो कि अब धीरे धीरे देश के सभी वर्गो ने अपना लिया है। हमें नेता और बुद्धजीवी को काटने में घिन्न आती है वो इसलिए कि
कई बुद्धिजीवी का खून चूसने के बाद हमारे भी कुछ परजीवी मच्छर बन्धु संक्रमित होकर खूद को बुद्धजीवी समझने लगे है लेकिन इस लाइलाज भयावह बिमारी से संक्रमित होने के बाद भी हम आदमी से बहुत अच्छे है क्यों कि आज तक किसी मच्छर ने दुसरे मच्छर का खून नही पीया है। हम मच्छर पक्के समाजवादी है। खानदान की परम्परा के अनुसार अमीर गरीब सरकारी व्यापारी सभी का खून समान भाव से चूसते है। राष्ट्र भक्त इतने कि जिस देश की हवा में साँस लेते है उस देश की जनता की तालियों के बीच आकर प्राण भले गवा दें लेकिन देश छोड कर विदेश जाने की कभी सोच भी नही सकते। ईमानदारी से ईमानदार आदमी का स्वदेशी खून चूसते है। हाॅ कभी कभी दहेज में लडके वालों को दो चार लीटर खून देना हो तो सेठ साहूकार का भी मजबूरी में चूसना पडता है। हमारा चरित्र और आत्मबल तो उदाहरण देने योग्य है हम मच्छरों में एक पैदायशी गुण है न तो हम बलात्कार करते है न आत्महत्या।
अब आप से कह रहा हॅू किसी से कहियेगा मत दो चार वर्ष पूर्व एक दिन देश प्रेम जगा था सोचा कि पूरे परिवार के साथ चल कर देशद्रोही याकूब मेमन के शरीर का सारा खून चूस लिया जाय। लेकिन तब तक फिल्म का वो सम्वाद याद आ गया -कि एक मच्छर साला आदमी को हिजडा बना देता है। अब मै भाईजान को काट लेता और खुदा न खास्ता कुछ ऐसा वैसा हो जाता तो देश के कम से कम उन चालीस सम्वेदनशील बुद्धिजीवियों को कौन सा मुंह दिखाता। जो क्षमायाचना के लिए महामहिम को पत्र लिख सकते है। मेरी क्या गत करते। इनके प्रश्नो के उत्तर के लिए मुझे देश भर के बुद्धजीवी मच्छर एकजुट करने पडते। हम मच्छर आज से कसम खाते है कि आज के बाद किसी आतंकवादी या बुद्धजीवी का खून चूसने को सपने में भी नही सोचेंगे। बड़े आये हो मुँह उठाये ! अबे जब हम याकूब को नही काटे तो तुम को काटेंगे !
बहुत ही सुन्दर कटाक्ष भरा व्यंग्य.....!!
जवाब देंहटाएंप्रदीप जी
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार