फिर वहीं कजरी वहीं पेंगे वहीं गजरे अछूते
कामिनी अल्हड़ की गीली आँख सावन आ गया.
इश्क के माथे पे आया अक्षरों का कुछ पसीना
यक्ष ने भेजे मधुर सौगात सावन आ गया.
रामगिरि के आश्रमों में सघन घन तो गरज कर के
चपल चंचल दामिनी को अंक भर के बरस कर के
शिथिल होंगे गात किन्तु बरसते है नैन ये दिन रात
सावन आ गया
है वसन बलकल अभी पर यज्ञ की समिधा हुयी है
चित्त स्वाहा हो गया है
शकुन्तला अभिधा हुयी है
प्रेम की तो पाण्डुलिपि ले गया वायु उड़ा के
पूछती है प्रिय सखी फिर मुद्रिका की बात
सावन आ गया
रात काली विरहिणी की कथा जैसी है सुहानी
याद रखे या कि भूले ये व्यथा तो है सुहानी
अवध हो या मगध दुःख की घेर कर बदली घिरी तो
जब कही बिजली गिरी तो
उर्वशी के उर हुआ आघात
सावन आ गया
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