हमनें कुछ फाइल चबा ली तो बुरा मान गये


पिछले दिनों एक बहुत ही मजेदार खबर छपी थी कि प्रदेश के सचिवालय की कुछ फाइलों को दो कुत्तों ने बडी बेरहमी से फाड फाड कर चबा डाला। सवाल यह उठता है कि जिस सचिवालय में आम आदमी की पहूॅच नही है वहाॅ तक ये कुत्ते पहूॅचे कैसे ? एक कुत्ता स्वर्गारोहण के समय युधिष्ठिर के पीछे पीछे हिमालय तक चला गया था। कही सत्तारोहण के चक्कर में ये कुत्ते भी किसी नेता के साथ सचिवालय में तो नही पहूॅच गये थे ? खैर ये तो जाॅच का विषय है। हमारे जैसे लोग सचिवालय में पहूॅचकर फाइल चबाने वाले इन कुत्तों के विषय में केवल अनुमान ही तो लगा सकते है। आदिकाल से आदमी जिस पर सबसे पहले भरोसा किया वह कुत्ता था। तभी से वफादारी के उदाहरण के लिये कुत्ते का प्रयोग किया जाता है। जिन फाइलों पर कुत्तों ने अपनी वफादारी दिखलायी है हो सकता है बडे बाबू न दिखा पायें हों। अर्थात जो काम बडे बाबू न कर पाये कुत्तों ने कर दिया। ये तो कुत्तों की महानता है कि जनता के काम आ गये।
          जबसे आदमी में कुत्तेपन की बढोत्तरी होने लगी है कुत्ते आदमीयत के ज्यादा करीब होने लगे है। हमनें एक कटप्पा जैसे स्वामीभक्त दिखने वाले कुत्ते से पूछा कि आदरणीय बतायें कि चूहे के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करते हुए आप के बिरादर ने क्यों  सचिवालय की दो फाइलें चबा डाली। अगला ताव में आगया ! बोला- वाह भाई जब आरक्षण के चूहे प्रतिभाशाली नौजवानों की डिग्रियाॅ कुतर डालते है तब तो आप या आप की सरकार बुरा नही मानती और हमारे विरादर ने कुछ फाइल चबा ली तो बुरा मान गये। देखिये अब ये गली के बेरोजगार कुत्ते तो सचिवालय की फाइल चबा नही सकते जरूर वो अति महत्वकांक्षी सरकारी कुत्ते रहे होंगे। वरना सरकारी फाइलों का तो यमराज भी कुछ नही बिगाड सकते। इस साहसी कार्य के लिए कुत्ते सदैव याद किये जायेंगे। यही फाइल कोई कलर्क चबा जाता तब शायद यह खबर नही बनती । क्यों कि रोज छोटे मोटे कार्ययालयों में हल्की फुल्की दबाव विहीन फाइलें कलर्क के गाल में कवलित हो जाती है और किसी को कानों कान भनक तक नही लगती।
अखिल भारतीय श्वान एशोसिएशन भूंक भूंक कर सरकार से इस घटना की सी बी आई जाॅच कराने की मांग करती है ताकि जनता के सामने यह तथ्य उजागर हो सके कि कुत्ते ने बडे बाबू का काम किया है या बडेबाबू ने कुत्ते का।  

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