आरक्षण का हार्दिक प्रयोग


लगभग 6 करोड 27 लाख की आबादी वाले गुजरात में 12.50 फीसदी पटेल पाटीदार समुदाय के लोग रहते है। जिसमें 50 प्रतिशत पटेल हीरा व्यापार, कपडा और फार्मा की छोटी बडी कम्पनियों पर काबीज है। तो 30 फीसदी सरकारी सेवाओं में है। सरकार ने कितनी उपेक्षा की है पटेल समाज की। गुजरात में भरतीय जनता पार्टी के 120 में से मा़त्र 40 विधायक ही पटेल है। आनन्दीबेन पटेल सहीत 7 मन्त्री पटेल है। इस जगह नौजवान हार्दिक पटेल द्वारा आरक्षण का हार्दिक प्रयोग करने से सरदार बल्लभ भाई का तो बता नही सकता लेकिन केशु भाई पटेल जरूर प्रसन्न हो सकते है। भले दिल्ली से लेकर बिहार तक के चेहरे पर लकालक खुशी दिखाई दे रही हो लेकिन इतना तो तय है कि जिस राज्य में 52 वर्ष का आदमी भी ईमानदारी से काम कर के रोटी खाने में पूरा विश्वास रखता है वहाॅ के 22 वर्ष के युवाओं को आरक्षण की वैशाखी चाहिए खुद के पैरो पर खडा होने के लिए। आरक्षण का जन्म शायद इसलिए हुआ था कि समाज में सभी समान बने। लेकिन सत्ता की लोलुपता के चलते जब से यह आरक्षण जन्मा समाज में जातिगत द्वेष निरंतर बढता ही गया।
             मेरे क्रान्तिकारी दिमाग के विस्फोटक विचार के अनुसार आरक्षण का असली हकदार, चाहे वह किसी भी जाति का हो देश का पति समाज है। जो युगों  युगों से पत्नियों द्वारा शोषित और पद दमित है। महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया जब कि उनका घर में सौ प्रतिशत प्रभाव जमा रहता है। पत्नी शोषित पति बेचारा अपने इच्छानुकूल तरकारी तक नही खा सकता। पत्नी अपने मनचाहा फैशनानुसार नये नये परिधान धारण करें और पति बेचारा अपने ही बनवाये घर में अर्धनग्न भी न हो सके। भले नेता सडक से लेकर संसद तक नंगे हो जाये। यदि आरक्षण का हार्दिक प्रयोग करना है तो इसे पति समाज के लिए किया जाय। पत्नी फुलन देवी हो या तुलसी टीबी का रीमोट इन्ही के हाथ में रहता है पति मुलायम हो या चालू मनपसन्द चैनल देखने का अधिकार पतियों को आज तक न मिल सका । या तो इन पीडित पतियों को आरक्षण दिया जाय या पति पद से मुक्त किया जाय। सोशल मिडिया पर भी हम जितना अपमान झेलते है उतना तो राष्ट्रीय पार्टी क्षेत्रिय पार्टी से गठबन्धन कर के भी नही झेलती होगी। पतियों के तमाम ट्रक  छाप शायरी से लेकर ज्ञानवर्द्धक पोस्ट तक, एक एक लाइक के लिए हाथ जोडे तरसते रहते है। वही पत्नियां केवल निज फोटो चेंप दे तो टीप्पणियों की कतारें लग जाती है। पति आज तक इन पत्नियों के आगे अतिपिछडे के अतिपिछडे ही रह गये। चाहे विवाहित हो या क्वांरी किसी भी सरकार ने इनके तरफ ध्यान नही दिया। दुखडा तो बहुत है। असल में पत्नी पीडित शोषित पति समाज ही असली आरक्षण का हकदार है।      

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