कहो फलाने ! अब का होई


बिहार में हुए चुनाव नतिजों को लेकर एग्जिट पोल ही नही शुरूआती रूझानों तक में इलेक्ट्रानिक मिडिया से लेकर पार्टियां तक पशोपेश में पडी रही। सबसे खराब हालत समर्थकों का हुआ जो यही नही समझ पाये कि हंसे या गाल फुलावे। भारतीय जनता पार्टी की दशा उस भकुआये दुल्हे की तरह होगई जिसको शादी के मंडप में पता चला कि दुल्हन ऐन मौके पर प्रेमी के संग फुर्र हो गई है।
अलबत्ता कांग्रसियों को बहुत दिनों के बाद खुशी मनाने का मौका हाथ लगा है कुछ कार्यकर्ता  तो इतने खुश है कि मिठाई में आग लगा के सुतली बम को लड्डू की तरह खा गये। किसके किसके नाम गिनायें और भी बहुत लोग खुश हैं। जैसे शत्रुघ्न सिन्हा भी खुश है आखिर वो जो करना चाहते थे कर लिए। सिंह साहब सियार वाली भषा बोल कर खुश है। स्थानिय नेता अपनी अहमियत समझकर प्रसन्न है। बी एल ओ मतदान का प्रतिशत बढाकर खुश है। पडोसी देश प्रधानमन्त्री की थकान भरी उदासी से खुश है। मांझी इसलिए खुश है कि जिसने उनकी नैया डूबाई थी उसकी नैया को डूबाने वाले भी अत्यधिक बलशाली के रूप में उभरे है। बिहारियों के आइकाॅन लालू जी और उनकी संतान सबसे जियादा खुश है, हे भगवान ऐसा बाप सबको दे, जो केवल पैदा ही नही करते बल्कि उनका भविष्य बनाने में क्या क्या  तक नही कर देते। आखिर आज के युग में बेटे बेटियों के साथ रिस्तेदारों को भी सेटल कर देना महान काम है भाई। जिन्हें जंगलराज पार्ट 2 समझ में आ रहा है वो गम्भीरता से विचार करें । बिहार गौतम बुद्ध और महावीर जैसे ज्ञानियों की धरती है यहां अतिरिक्त ज्ञान देने की आवश्यकता नही है। बिहारी पर्यावरण के हिमायती है अतः इन्हें जंगल से स्वभाविक रूप से प्रेम है। जिस मसीहा की निगेहबानी में अपहरण, रंगबाजी, गुंडागर्दी जैसे घरेलु उद्योग पुनः फूल फल सकते हो उसी को लाना इनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती थी। जिसका निर्वाह उन्होने किया। इसमें अन्य राज्यों के बुद्धजीवी अपना माथा ठोक कर सिर दर्द पैदा न करें। बिहार में जाकर सिकन्दर भी हार गया था। चाणक्य वही के थे वे कभी दूसरे छद्म चाणक्य के अनुसार नही चल सकते। बिहार चमत्कारी प्रदेश है उन्हें स्कूटर पर भैंस लादने की कला आती है। बात गाय से शुरू हुई थी गोबर पर खत्म हो गई। हां महागठबन्धन के दो नेताओ कों गले मिलते देखकर कर कुछ प्रबुद्ध लोगों ने मेरे कान में धिरे से यह जरूर कहा कि ऐसा लग रहा है कि चन्दन सांप की बाहों में खुद बखुद आगया है। तो कुछ सशंकित आत्माओं ने कैलाश गौतम की भोजपुरी कविता सुनाई कि-   
 धइलस छूटल घाट धोबिनिया
 अब त पटक पटक के धोई
 कहो फलाने अब का होई ।। 
                                                  

2 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. अनिल चौबे जी
    २७ अक्टूबर को प्रकाशित लौटाने लिए ही सही व्यंग्य पुरस्कार प्राप्त करने वालों द्वारा अपनाए गए तरीकों के तरफ जैसे इसारे कर रहा है उससे तो लगता है कि इसके लिए उनके मन और मकान दोनो ही जगह जगह नही है।विरुदावलियां गाकर पाये पुरस्कारों के महत्व को वे लोग क्या समझ सकेंगे जो एक प्रकार के निहित मानसिकता और सोच के शिकार हैं।सरकारों के बदलते ही व्यवस्थाएं भी बदल ही जाती हैं इस ओर आपका संकेत भी सर्वथा उचित है।
    ३ नवंबर को प्रकाशित पंचायत चुनाव भी लाजवाब है।वास्तव मे जबतक चुनाव हो नही जाते तब तक सबको अपना कीमत मालूम होता है और वह पूरे सौ फीसद वसूलने की कोशिश भी करता है शेष सब औपचारिकताएं ही बचती हैं।
    १० नवंबर को प्रकाशित कहो फलाने अब का होई मे बीजेपी की तरफ जो संकेत कर बताना चाहते हैं वह बिल्कुल सत्य है।इस परिणाम की कई वजहें हैं हारने वाले मंथन करके चाहे कुछ भी निकालें अपनी गलती कभी नही मानेंगे।पर्यावरणप्रिय प्रदेश ने एक बार फिर पर्यावरण का दायित्व योग्य हाथों को सौंप ही दिया।
    इन सबके बीच अभिव्यक्ति के माध्यम का आपका चुनाव सर्वोत्तम है,धन्यवाद।

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  2. आभार भाई
    डॉ नन्द किशोर तिवारी जी

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