चैराहे पर चाय पान की दुकानों से लेकर यात्रा के दौरान बस रेल में सफर करते समय, यहाॅ तक की अन्तिम यात्रा में भी एक शब्द बहुत चर्चा में आया है ’’असहिष्णुता’’। जिधर देखो उधर असहिष्णुता पर हाय तौबा मची हुई है। आलम यह है कि नमस्कारी के बदले सौ का नोट थमाने वाले साले भी असहिष्णु लगने लगे है। सगे सम्बन्धियों के बीच या बाजार में भी थोडी आवाज तेज हुई नही की डर लगने लगता है कि सामने वाला असहिष्णु न मान ले। असहिष्णुता अब सपने में भी तरह तरह का रूप धारण कर कें आने लगी है। बीबी बच्चों के जायज नाजायज मांगों पर अब कोई भी प्रतिवाद करने का हिम्मत नही जुटा पाता, पता नही कब ये असहिष्णु समझ कर नवम्बर में ही मार्च निकालने लग जायें, और यदि चैनल वालों ने संूघ लिया तब तो आप की खैर नही। इसलिए आप सभी जन मेरी तरह ना नुकुर करने की आदत को छोडिये और परिवार समाज तथा देश की सहिष्णुता को बरकरार रखिये।
असहिष्णुता के नाम पर इतने ताशे बजाये जा रहे है कि अब ये शब्द कभी कभी मजाक जैसा लगने लगा है। शायद सरकार बदलते ही सहिष्णुता भी अपना अर्थ बदल देती है। या तो वयक्तिगत लाभ लाभ के लिए लोग बाग बदल लेते होंगे । जैसे बिहार में एक दुसरे के कट्टर दुश्मन पिछले दिनों चुनावी समीकरण के हिसाब से परस्पर सहिष्णु हो गये। और कही भी न गलने वाली उनकी दाल बिहार में गल गई। एक बार तो ऐसा भी लगता है कि ये चुनाव ही असहिष्णुता की जड है। ये कम्बख्त चुनाव खत्म असहिष्णुता समाप्त हो जाती है। पुरे विश्व को हमसें सहिष्णुता सिखनी चाहिए। खासकर पेरिस और फ्रांस को, हम जितने देर में दुकान से कैन्डिल खरिदकर मार्च निकालने की तैयारी करते है इतने देर में इसने तो सामने वाले की एैसी तैसी कर दी , इनका ये काम असहिष्णुता के अन्दर आता हैं। सहिष्णुनता की नई परिभाषा यह है कि कोई आपके शान्तचित्त विकसित हो रहे दोनों गालों पर लागातार तमाचा मारे तो आप सविनय निवेदन करें कि मान्यवर आप धन्य है यदि मेरे पास भगवान का बनाया हुआ कोई तीसरा गाल भी होता तो मैं आपके समक्ष जरूर प्रस्तुत करता। सहिष्णुता कब कायरता का रूप धर ले पता ही नही चल पाता। बकौल कवि यह भी यह भी याद रखना चाहिए कि-
कायरता जिस चेहरे का श्रृंगार करती है
वहाॅं मक्खी भी बैठने से इनकार करती है
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