भउजी को आस पास घेर कर खडे होने वाले लोग उनके अपने कहे जाने वाले आदमी थे। जो चेहरे से उदास और देखने से मायूस दिखने का सफल प्रयास कर रहे थे। लेकिन लग ऐसा रहा था जैसे सब किसी न किसी मजबुरी या विशेष दबाव के चलते इक्ठ्ठे किये गये हो। कारण भी साधारण नही है। भउजी परधानी का चुनाव हार गयी है। कलतक परधानी के चुनाव में भउजी के लिए तन और मन से लगे लोग आज सम्बोघन के लिए उचित शब्द भी नही तलाश कर पा रहे थे। पूरे चुनाव के कर्ता धर्ता भउजी के हार जाने पर हाथ पर हाथ धर्ता बने बैठे थे। जीत की सम्भावना से मंगाये गये लड्डू डिब्बों में मुंह छिपाये पडे थे। जैसे पुराने जमाने की नयी नयी दुल्हन घूुन्घट कीये बैठी हो। जलपानानुरागी कार्यकर्ता उन्हें खा जाने वाली नजरों से घूर रहे थे। मतदान के पहले वाली रात को बदले हुए समीकरण के चलते ही आज की शाम ने बदनामी की डर से कुहरे की चादर से अपना मंुह ढक लिया है। बैठक कक्ष में अपने अपने तरीके से हार की समीक्षा बैठक हो रही है। सास ननद को दी जाने वाली सारी देशज गालियाॅ भउजी को याद थी वो चाहती तो इस हमदर्द भीड को दो मिनट में किनारे लगा सकती थी लेकिन इसका प्रयोग विपक्षी के लिए, या चुनाव लडने के लिए उकसाने वाले अपने पति के लिए करना उचित लग रहा था। क्यों कि जो हाथ सास ससुर को अभिवादन के लिए संकोच बस कभी कभी उठ जाते थे वहीं हाथ इस पति नामक जीव के कहने पर एक एक वोट के लिए हमेशा जुडे रहे। जिनका मुंह न देखने लायक था उनके चरण धरने पडे। भउजी तो ये भी समझती है कि ये गााॅव वाले थोडी देर बाद नव निर्वाचित भउजाई को बधाई देने जरूर जायेंगे। अतः बार बार सहज होने का असफल प्रयास कर रही थी। भउजी का चेहरा थका थका लग रहा था हालाकि पिछले एक महिनों से जन सम्पर्क के अलावा कोई थका देने वाला काम नही किया था। शायद भविष्य की चिन्ता से चेहरे का मेकप उड गया था। मतगणना के बाद भउजी और साडी दोनो की अकड ढीली पड गयी है। न आने वाले लोग निष्ठा पर सन्देह न हो जाय इसलिए मोबाइल पर उपस्थिति और सान्त्वना प्रगट कर रहे हैे। बीच बीच में भउजी मुस्कुरा भी देती है, लेकिन कार्यकर्ता ऐसा बातावरण बना चुके है, जैसे जता रहे हो कि भउजी की हार से सारा इलाका ही गमगीन है। कोने में खडा ड्राइबर भी समझ चुका है कि अब कहीं नहीं जाना होगा भउजी तो हार गयी परधानी।
भउजी तो हार गयी परधानी
भउजी को आस पास घेर कर खडे होने वाले लोग उनके अपने कहे जाने वाले आदमी थे। जो चेहरे से उदास और देखने से मायूस दिखने का सफल प्रयास कर रहे थे। लेकिन लग ऐसा रहा था जैसे सब किसी न किसी मजबुरी या विशेष दबाव के चलते इक्ठ्ठे किये गये हो। कारण भी साधारण नही है। भउजी परधानी का चुनाव हार गयी है। कलतक परधानी के चुनाव में भउजी के लिए तन और मन से लगे लोग आज सम्बोघन के लिए उचित शब्द भी नही तलाश कर पा रहे थे। पूरे चुनाव के कर्ता धर्ता भउजी के हार जाने पर हाथ पर हाथ धर्ता बने बैठे थे। जीत की सम्भावना से मंगाये गये लड्डू डिब्बों में मुंह छिपाये पडे थे। जैसे पुराने जमाने की नयी नयी दुल्हन घूुन्घट कीये बैठी हो। जलपानानुरागी कार्यकर्ता उन्हें खा जाने वाली नजरों से घूर रहे थे। मतदान के पहले वाली रात को बदले हुए समीकरण के चलते ही आज की शाम ने बदनामी की डर से कुहरे की चादर से अपना मंुह ढक लिया है। बैठक कक्ष में अपने अपने तरीके से हार की समीक्षा बैठक हो रही है। सास ननद को दी जाने वाली सारी देशज गालियाॅ भउजी को याद थी वो चाहती तो इस हमदर्द भीड को दो मिनट में किनारे लगा सकती थी लेकिन इसका प्रयोग विपक्षी के लिए, या चुनाव लडने के लिए उकसाने वाले अपने पति के लिए करना उचित लग रहा था। क्यों कि जो हाथ सास ससुर को अभिवादन के लिए संकोच बस कभी कभी उठ जाते थे वहीं हाथ इस पति नामक जीव के कहने पर एक एक वोट के लिए हमेशा जुडे रहे। जिनका मुंह न देखने लायक था उनके चरण धरने पडे। भउजी तो ये भी समझती है कि ये गााॅव वाले थोडी देर बाद नव निर्वाचित भउजाई को बधाई देने जरूर जायेंगे। अतः बार बार सहज होने का असफल प्रयास कर रही थी। भउजी का चेहरा थका थका लग रहा था हालाकि पिछले एक महिनों से जन सम्पर्क के अलावा कोई थका देने वाला काम नही किया था। शायद भविष्य की चिन्ता से चेहरे का मेकप उड गया था। मतगणना के बाद भउजी और साडी दोनो की अकड ढीली पड गयी है। न आने वाले लोग निष्ठा पर सन्देह न हो जाय इसलिए मोबाइल पर उपस्थिति और सान्त्वना प्रगट कर रहे हैे। बीच बीच में भउजी मुस्कुरा भी देती है, लेकिन कार्यकर्ता ऐसा बातावरण बना चुके है, जैसे जता रहे हो कि भउजी की हार से सारा इलाका ही गमगीन है। कोने में खडा ड्राइबर भी समझ चुका है कि अब कहीं नहीं जाना होगा भउजी तो हार गयी परधानी।
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