बीरू सरदार की दुकान पर गरमा गरम चाय का गिलास थामते हुए बाबा बटुक नाथ ने सूफियाने अन्दाज में दार्शनिक वक्तब्य देना शुरू किया- दिल्ली कोई छोटा मोटा शहर नही है वहाॅ राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, सरकारी, उद्योगपति से लेकर करोडपति तक हर तरह के लोग रहते है वहाॅ का विधायक होना साधरण सी बात नही है। जो इनका वेतन लगभग 2.4 लाख हो गया तो आप माथा पीट रहे है। इन विधायको की कोई सुनता ही नही था इनका हाल भी जनता की तरह हो गया था। कितने दिनों से इनकी ईच्छा थी की वेतन बढा दिया जाय लेकिन कोई सरकार सुनती ही नही थी भला हो केजरीवाल जी का जिन्होनें सहयोगियों के बेमौसम खाॅसने का मतलब समझ गये। अब देखिए न महंगाई कितनी बढ गयी है। आप क्या समझते है कोई इन नेताओं को नही बतायेगा तो इन्हें पता ही नही चलेगा। जब सब कह रहे है तो जरूर सही ही कह रहे होंगे। महंगाई जरूर बढी है और वेतन कितना बढा है पहले से मात्र चार सौ प्रतिशत ज्यादा। भाई साहब ! ये दिल्ली के विधायक है गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाली जनता समझ रखे हो क्या। लाख पच्चास हजार में आजकल होता ही क्या है। ये तो इनके बच्चों की पाकेट मनी से भी कम है। बीबी के खर्चे सुनोगे तो कुवांरे मर जाने का मन करने लगेगा। तब से कचोधन कुट रहे है कि वेतन बढाने की क्या जरूरत है। तो गुरू विधायकी ऐसे ही थोडे मिल जाती है। तमाम तरह के हथकन्डे अपनाने पडते है। कर्मचारी तक छठवाॅ वेतन मान पा रहे है। जबकी पद स्थाई है। पर इनका क्या परमानेंट नौकरी तो है नही कल को विधायक नही रहे तो। बेरोजगार आदमी तक अपने बीबी बच्चों के लिए चिन्तित रहता है तो क्या ये लोग अपने बच्चों कों अनाथ छोड दें। इन्हें भी अपने बाल बच्चों का भविष्य संवारना है। भविष्य में इनके बच्चों को चुनाव लडना होतो खर्चे कहाॅ से आयेंगे। अब देश को आम जनता के भरोसे तो नही छोडा जा सकता ।
खानपान का भी विशेष ध्यान रखना पडता है पता नही कब विधान सभा में विपक्ष के साथ खुद भी नंगा होना पड जाय। विधायक है च्यवनप्राश नही तो क्या घास खायेंगे। सगी पत्नी से लेकर सहयोगी महिलाओं के विषय में भी सोचना पडता है। नही तो पता चला संविधान के हिसाब से महिला के अधिकार का हनन हुआ है। देते रहो अखबार वालो को जबाब। बुढापे में डीएनए टेस्ट का फजीहत अगल से है। फिलहाल दिल्ली सरकार ने विधायकों के दर्द को समझते हुए वेतन में चार गुना वृद्धि करकें एक महत्वपूर्ण काम किया है। पर इतने से भी होता क्या है ? क्या देती है सरकारें इन विधायकों को ? फ्री का आवास, भत्ता, थोडी पेंशन, और फ्री में रोडवेज बस तथा रेलवे का पास। इसमें कौन सा अहसान करती है सरकारें हमारे विधायकों पर। परिवहन और रेल के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक को यह सुविधा आजीवन मिलती है। वैसे काम तो इनका दस लाख महिने से भी नही चलेगा। लेकिन देश की खातीर तब तक ये बेचारे विधायक 2.4 लाख महिने में ही जैसे तैसे गुजर बसर कर ही लेंगे। अब तक बाबा बटुक नाथ की चाय और व्याख्यान माला दोनों समाप्त हो चुकी थी।
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