प्रेम है अनन्त दिव्य सत्य का स्वरूप किन्तु
प्रेम को तो प्रेम से निबाहना जरुरी है।
कहते कबीर प्रेम पन्थ है कृपाण धार
आँखे मुद दौड़ कर चाहना जरुरी है।
दिल टूट जाये प्रेम में तो कोई बात नही
हाथ पैर टूटे तो उलाहना जरुरी है ।
प्रेमिका का भाई बन्धु खली सा बली हो तब
प्रेम का पयोधि अवगाहना जरुरी है ।
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