पानी

छोड़ नदियों का तट सुनसान पनघट
फोड़ कर घट महबूब गया पानी है।
बड़े बड़े घरों के तरण ताल में है व्यर्थ
छोटे नलकों से बह खूब गया पानी है।
याचक हो सावन भी मांगने लगा है पानी
देते देते मानसून ऊब गया पानी है ।
कल तक कल कल झूम कर बहता था
देखो आज बोतलों में डूब गया पानी है।

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