गीत

कैसा हिंदुस्तान आज का कैसा हिंदुस्तान है
नंगा यहाँ जुलाहा भाई भूखा यहाँ किसान है ।।

संतो और महंतो से ये देश आज का हारा है
पागल कुत्ते का काटा है चौधरियों का मारा है
कुर्सी में ईमान आज है कुर्सी में आज़ादी है
लोकतन्त्र अंधों का हाथी नेताओ की चाँदी है
जनता जैसे कूड़ा-करकट और खेत खलिहान है ।।

यह भी कैसा उलटफेर है पक्का चोर सिपाही है
गलियारे में फाग मचा हैं घर में मची तबाही है
अब भी दूरी बनी हुयी है रोटी और लँगोटी में
घर की सारी ख़ुशियाँ गिरवी केवल दाढ़ी चोटी में
यह बतलाना मुश्किल है जी कौन बड़ा शैतान है ।।

सब थाली के बैंगन है सब बेपेंडि के लोटे है
बातें सब की बड़ी बड़ी है करतब सबके छोटे हैं
सावधान रहना है हरदम हे भाई ग़द्दारों से
सर्वधर्म समभाव मुखौटा लैस यहाँ हथियारों से
गिरगिट सा ये रंग बदलते यह इनकी पहचान है ।।

इनको केवल वोट चाहिए हम जैसे यजमानों से
पूरे पूरे गाँव का सौदा होने लगा प्रधानों से
जाति धर्म भाषा को लेकर ये दंगा करवाते है
अपने -अपने मौक़े पर ये क़ौमो को मरवाते है
इनकी नीयत ठीक नहीं है गिरा हुआ ईमान है ।।

बेकारी है भुखमरी है महंगाई है देश में
वही ग़ुलामी नए सिरे से फिर आयी है देश में
पर्दा ही पर्दा है बाहर भीतर-भीतर पोल है
गाँव-गाँव की हुईं तरक़्क़ी सिर्फ़ दूर का ढोल है
फूलों का शौक़ीन हमारा बुलबुल लहूलूहान है ।।

कोई स्वाद नहीं मिलता है होली में दीवाली में
ख़ूनी भैंसा देह बनाता वह देखो हरियाली में
साठ गाँठ है मिली भगत है कैसी गुंडागर्दी है
जैसी उजली टोपी निकली वैसी ख़ाकी वर्दी है
तानाशाही यहाँ रहेगी उसे मिला वरदान है।।

कितना पानीदार देश है कितना पानीदार है
कुछ कहती सरकार यहाँ पर कुछ कहता अख़बार है
कोई नक़्शा सही नहीं है हर तस्वीर अधूरी है
गाँव सभा से लोकसभा तक अब बदलाव ज़रूरी है
अंधे की अगुवाई है यह दिशाहीन अभियान है ।।

सब कुछ जैसे पुश्तैनी है गद्दी यहाँ बपौति है
नेता को आदमी बनाना सबसे बड़ी चुनौती है
अफ़वाहों के रंग में डूबी बहती हुई हवायें है
रावण भी बहुतेरे देखो बहुतेरी लंकाएँ है
ख़तरे में रसखान देश का ख़तरे में भगवान है ।
             (कैलाश गौतम)
#

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें