कभी खेतों में गेंहूॅ और धान बोता था, अब आत्महत्या का सामान बोता हॅू। मेरे पर कलम चलाते हुये न जाने कितने कवियों कि स्याही सूख गयी पर कोई हमारी दीन दशा को खुशहाल नही लिख सका। मैं किसान हूॅ। कृषिप्रधान देश में एक तपोनिष्ठ ऋषि की तरह बिना फल की ईच्छा किये कृषि कर्म को अनवरत करता रहता हॅू। ब्रहममुहूर्त में सूरज के जगने से पहले खेतों में पहूंचकर धरती के सीने पर अपने पसीने से भारत की भूख का समाधान लिखता हॅू। चिल्चिलाती धूप में जब वातानुकूलित कमरों में बैठे हुये बडे लोग, पालतु कुत्तों के सिर पर हाथ फिराते हुये मैडम से पूछते है कि डार्लिंग आज लन्च में क्या बना है तब मैं नीम के नीचे मेंड पर बैठा आसमान को निहारता हुआ भगवान से गुहार करता हूॅ कि हे भगवान ! इस बार मौसम की मार से हमारी फसल बरबाद न होने पाये। लेकिन गरीब की तो थानेदार नही सुनता, सरकार नही सुनती तो भगवान कैसे सुन लेंगे। कर्ज से झुकी कमर, महाजन का तगादा, बैंक की नोटीस जब कुछ नही कर पाते तो आत्महत्या करते है।
किसान का प्रयोग सरकारें वोट लेने के लिये, नारे गढने के लिये, और रैलियों में भीड जुटाने तथा भाषण सुनने के लिये करती है। जैसे कोई चरित्रहीन व्यक्ति सच्चरित्रता का पाठ पढाता है,कोई चोर ईमानदारी का उपदेश देता हो, वैसे ही जिसने कभी हल नही देखा किसान की समस्यायों का किसान रैली कर के हल निकालता है। उधर बजट सत्र में कर्ज माफी की घोषणा हुयी नही कि इधर बेहया की फूल की तरह मुस्कराता हुआ नेता चुनाव क्षेत्र में मुंह दिखाने चला आता है। जब भी हमारी उपजाउ जमीनें अनुपयोगी लगने लगती है तब कोई सरकारी दमाद उसे औने पौने दामों में हडप लेता है। या तो फिर हमारी वह भूमि जिससे होने वाले पैदावार से बिटिया की सगाई की रस्में जुडी है। बेटे की पढाई जुडी है, बाबुजी की दवाई जुडी है सरकार उसका अधिग्रहण कर लेती है। जिस जमीन को हम अपनी माॅ मानते है उसके नाम पर सहानुभूति के साथ मुआवजा लेकर मनमसोस कर रह जाते है। और देश का तथाकथित बुद्धजीवी इसे विकास की दिशा में एक और अभिनव कदम बतलाता है। मै एक किसान हॅू मैं इस देश के प्र्रधान से, चिन्तकों से, विचार कों से, जनवादी कवि जमुना प्र्रसाद उपाध्याय के हवाले पूछना चाहता हूॅ-
धान से गेहूं से जब गोदाम सारे भर गये
पूछते हो पेड को इन पत्तियों ने क्या दिया।
जो चरागों में जरा सी रौशनी है हमसे है।
देश को इन लाल नीली बत्तियों ने क्या दिया।।
किसान का प्रयोग सरकारें वोट लेने के लिये, नारे गढने के लिये, और रैलियों में भीड जुटाने तथा भाषण सुनने के लिये करती है। जैसे कोई चरित्रहीन व्यक्ति सच्चरित्रता का पाठ पढाता है,कोई चोर ईमानदारी का उपदेश देता हो, वैसे ही जिसने कभी हल नही देखा किसान की समस्यायों का किसान रैली कर के हल निकालता है। उधर बजट सत्र में कर्ज माफी की घोषणा हुयी नही कि इधर बेहया की फूल की तरह मुस्कराता हुआ नेता चुनाव क्षेत्र में मुंह दिखाने चला आता है। जब भी हमारी उपजाउ जमीनें अनुपयोगी लगने लगती है तब कोई सरकारी दमाद उसे औने पौने दामों में हडप लेता है। या तो फिर हमारी वह भूमि जिससे होने वाले पैदावार से बिटिया की सगाई की रस्में जुडी है। बेटे की पढाई जुडी है, बाबुजी की दवाई जुडी है सरकार उसका अधिग्रहण कर लेती है। जिस जमीन को हम अपनी माॅ मानते है उसके नाम पर सहानुभूति के साथ मुआवजा लेकर मनमसोस कर रह जाते है। और देश का तथाकथित बुद्धजीवी इसे विकास की दिशा में एक और अभिनव कदम बतलाता है। मै एक किसान हॅू मैं इस देश के प्र्रधान से, चिन्तकों से, विचार कों से, जनवादी कवि जमुना प्र्रसाद उपाध्याय के हवाले पूछना चाहता हूॅ-
धान से गेहूं से जब गोदाम सारे भर गये
पूछते हो पेड को इन पत्तियों ने क्या दिया।
जो चरागों में जरा सी रौशनी है हमसे है।
देश को इन लाल नीली बत्तियों ने क्या दिया।।
very good
जवाब देंहटाएं☺☺☺☺
जवाब देंहटाएंSo cool
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंI love you and your shaayri
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