आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी भाषा और साहित्य का उदय लगभग सम्बत् १०५० से मना है ! दोहा छन्द कि ये विशेषता है कि इसका जन्म हिन्दी भाषा और साहित्य के उदय के साथ ही हुआ और साहित्य के आदिकाल `भक्तिकाल रीतिकाल तथा आधुनिक काल में भी अपना मत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है ! अमीर खुसरो ,कबीर,तुलसी ,रहीम ,केशव ,बिहारी ,मतिराम ,हरिऔध , सबने खूब दोहे लिखे हैं ! वर्तमान में भी दोहे लिखे जा रहे है ! प्रस्तुत है कुछ प्रसिद्ध कवि शायरों के दोहे----
श्री ज्ञान प्रकाश विवेक --
१--बड़ा निरंकुश हो गया , महानगर का प्रेत ! क्यारी क्यारी रौंद दी, कत्ल कर दिये खेत!!
२--पाश कालोनी देखकर , बहुत हुआ अवसाद !
सब के लब पर चिटखनी , क्या करते सम्वाद !!
श्री कृष्ण स्वरूप शर्मा --
चिड़िया अपना घोसला ,चाहे जहाँ बनाय !
दाना मंदिर से उठा , मस्जिद ऊपर खाय !!
गंगा प्रसाद पचौरी--
कंगन धरे उतार के , पायल तकिया माहि !
मत इनकी झनकार से ,सास ननद जगि जाहि!!
कृष्ण बिहारी *नूर *--
१-- साँझ हुई तो सज गये , काठों के बाज़ार ! मन का ग्राहक ना मिला , बदन बिका सौ बार !!
२--अज्ञानी को डर नही, डर है ज्ञान के साथ !
साँप देखकर सामने , बच्चा मारे हाथ !!
निदा फाज़ली -- १--मैं रोया परदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुःख ने दुःख से बात कि,बिन चिठ्ठी बिन तार !!
२ --छोटा कर के देखिये, जीवन का विस्तार !
आँखों भर आकाश है, जीवन भर संसार !!
मासूम गाजियाबादी --
१-- बाबुल तेरी बेबसी , मैं समझूं या राम !
ज्यों ज्यों कद बढ़ता मेरा, तेरी नींद हराम !!
२--स्वार्थ हवस दुर्भावना , नहीं बांधते धीर !
नही है छल के हाथ में सुख कि कोई लकीर !!
श्री ज्ञान प्रकाश विवेक --
१--बड़ा निरंकुश हो गया , महानगर का प्रेत ! क्यारी क्यारी रौंद दी, कत्ल कर दिये खेत!!
२--पाश कालोनी देखकर , बहुत हुआ अवसाद !
सब के लब पर चिटखनी , क्या करते सम्वाद !!
श्री कृष्ण स्वरूप शर्मा --
चिड़िया अपना घोसला ,चाहे जहाँ बनाय !
दाना मंदिर से उठा , मस्जिद ऊपर खाय !!
गंगा प्रसाद पचौरी--
कंगन धरे उतार के , पायल तकिया माहि !
मत इनकी झनकार से ,सास ननद जगि जाहि!!
कृष्ण बिहारी *नूर *--
१-- साँझ हुई तो सज गये , काठों के बाज़ार ! मन का ग्राहक ना मिला , बदन बिका सौ बार !!
२--अज्ञानी को डर नही, डर है ज्ञान के साथ !
साँप देखकर सामने , बच्चा मारे हाथ !!
निदा फाज़ली -- १--मैं रोया परदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुःख ने दुःख से बात कि,बिन चिठ्ठी बिन तार !!
२ --छोटा कर के देखिये, जीवन का विस्तार !
आँखों भर आकाश है, जीवन भर संसार !!
मासूम गाजियाबादी --
१-- बाबुल तेरी बेबसी , मैं समझूं या राम !
ज्यों ज्यों कद बढ़ता मेरा, तेरी नींद हराम !!
२--स्वार्थ हवस दुर्भावना , नहीं बांधते धीर !
नही है छल के हाथ में सुख कि कोई लकीर !!
अति सुन्दर
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