जैसे हर किसी व्यक्ति का कोई न कोई एक व्यक्ति आर्दश होता है। वैसे ही घोटालों का भी आर्दश, एक घोटाला ही होता है। आर्दश नामक एक घोटाला भी है जो बस नाम का आर्दश है। अपने जन नायकों द्वारा की गयी चारा, अलकतरा, स्पेक्ट्रम, कोयला, कामनवेल्थ जैसी छोटी मोटी कमीनी उपलब्धियों को ही हम आजतक की सबसे बडी उपलब्धि मानकर खुश हो रहे थे। आये दिन इस तरह की रहस्य रोमांचहीन स्तर विहीन घोटालों के विषय में सुन सुन कर हमें शर्म भी आनी बन्द हो गयी थी। लेकिन राष्ट्रवादियों के मार्फत हुआ व्यापम की व्यापकता को देखकर हमारा सीना भी अनयास छप्पन इन्च का हो गया। सारा भ्रम जाता रहा। दिल दुआयें देने लगा। आखिर अच्छे दिन ला ही दिये। पुरा विश्व कह रहा है भाई घोटाला हो तो व्यापम जैसा । प्याज की तरह परत दर परत व्यापम भी छिलता जा रहा है। हमें पुरा भरोसा है सरकार पर, अन्त में व्यापम के भीतर से भी कुछ नही निकलेगा। अन्तहीन मुकदमों के सिवाय।
भाई हम हिन्दूस्तानी लोग जिसे ईमानदार मान लेते है उसमें बेईमानी की एक भी बात देखना पसन्द नही करते। ईमानदार मतलब एक दम सर से पाॅव तक ईमानदार। बेईमान माने एकदम बेईमान हमें बीच का आदमी पसन्द नही है। जब ईमानदार लगने वाला बेईमान लगे तो क्या किया जाय। पहले तो प्रधानमन्त्री साइलेन्ट मोड पर रहते थे अब तो फ्लाइट मोड पर रहते है आदमी क्या करे। व्यापम अरे बापरे बापम्, घोटाले माललेवा होते थे यह तो जान लेवा है। एकदम खुनी घोटाला। नाम आया नही कि हो गयी स्वभाविक मृत्यु। कारण का पता नही चला मानो यमराज तैयार खडे हो कि नाम आया नही की लेकर चल दिये। शायद मृत्यु के देवता को आत्म हत्या का मतलब नही पता है। अरे जब कोई आत्म हत्या करता है तो भले समाज या सरकार की नजरों में एक आदमी मरा हो लेकिन उसके साथ उसके अपने घर के कितने लोग जीते जी मर जाते है किसी को भी पता नही चलता।
इस व्यापम की भयावह व्यापकता तो कवि की कल्पना से परे है यदि कवि केशवदास भी लिखते तो इससे ज्यादा कुछ नही लिख पाते कि-
नाम लिए कितने है मरे कुछ जाॅच किये परलोक सिधारे।
व्यापम टाइट है इतना कि सुसाइट से कितने जन तारे ।
सोच रहा कि रिजाइन देदूं नही पद है किसी कामका प्यारे।
काज कहाॅ यमराज का है जो पडोस बसे शिवराज तुम्हारे।
डॉ. अनिल चौबे जी
जवाब देंहटाएंघोटाला शब्द ही अपने आप मे निराला है पूरा घुटा हुआ। वास्तविकता यह है कि प्राय: सभी राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल इस दलदल मे आकण्ठ डूबे हुए हैं किन्तु एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।सभी घोटालों के प्रकाश मे आने के बाद जांच की मांग हमेशा होती है पहले इसमे कुछ आनाकानी करते हैं किन्तु वह तबतक नही शुरु करते हैं जब तक साक्ष्यों को ठीकाने नही लगा देते हैं।जो रिपोर्ट तैयार हो के आती है तो उसे भी कुछ लोग राजनीति से प्रेरित बताते हैं तो कुछ और ही साबित करने मे लगे रहते हैं।बातें सभी जनता की करते हैं जनता की कोई नही सुनता है लगता है कि इनमे इस बात की होड़ सी लगी हुई है कि हमारा घोटाला उनसे बड़ा होना चाहिए।वास्तव मे यह नैतिकता से जुड़ा हुआ मामला है जो किसी भी राजनीतिज्ञ के पास बचा नही रह गया है।इस बार आपने समसामयिक और सार्वकालिक मुद्दे को लेकर सर्वसाधारण की ही बात उनके बीच रखी है समय पर स पर अपना निर्णय जनता स्वयं सुना देगी आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय तिवारी जी
जवाब देंहटाएंनमन
आप हमारे नियमित पाठक है ! आप कि विद्वता पूर्ण टिपण्णी हमें उत्साहित करती रहती है ! इसे ही कृपा बनायें रखे !
प्रणाम