बिहार में हल्की बरसात के साथ ही चुनावी बयार बहने लगी है। पटना के गाॅन्धी मैदान में चुनावी वादों की प्रदर्शनि केे लिए बडे बडे स्थान सजने संवने के लिए आरक्षित होने शुरू हो गये है। वैनर पोस्टर झण्डों के निर्माण के लिए बडे पैमाने पर टेण्डर दिये जा रहे है। चैराहों से लेकर टीबी चैनलों तक भाषण देने की पैक्टिस शुरू हो गयी है। सबको अपनी अपनी जाति की महानता का एहसास होने लगा है। छुट भैय्ये नेजा की भी पूछ बढने लगी है उन्हें भी भोज भात का निमन्त्रण मिलने लगा है। बडे नेता अपने बेटा, बेटी ,दामाद के साथ राज्य की समस्याओं को लेकर अत्यन्त गम्भीर दिखने लगे है। किसी भी तरह सत्ता हथियाने वाले त्याग करने को तत्पर हो गये है। भैंस ने अपने पडवे को पुचकार कर कहा, मेरे लल्ला, मेरे बेटा खा ले ये चारा का अन्तिम निवाला है। अब तो बिहार में चुनाव होने वाला है।
जातिवाद की राजनीति कर, राजनीति में हास्य रस के विदूषक बने नेता जब सत्ता में सामिल रहने के लिए बडे से बडे त्याग करने की बात करें तो हास्यास्पद लगता है। लेकिन जनता को इतना याद कहाॅ रहता है। वह तो रोटी तेल,नून के जुगाड में इतना व्यस्त रहती है कि कभी किसी चुनाव को गम्भीरता से लेती ही नही। पेट भर गया तो इसे नीन्द आ गयी। कट्टा निमार्ण जैसे कुटीर उद्योग से अपने कैरियर का शुभारम्भ करने वाले युवकों को अचानक विकास की चिन्ता सताने लगी है। अपने कुल खानदान को विकसित करना जो धर्म समझते थे ऐसा क्या हो गया कि धर्मनिपेक्षता की बात करने लगे। भोजपुरी अश्लील गीतों का मुखडा फेंक कर सडको पर चलने वाली महिलाओं को सरेआम शर्मसार करने वाले बेरोजगार युवकों कों सम्मान सूचक शब्दों के साथ घर घर दस्तक देकर वोट मांगने का रोजगार मिल गया है। क्या गौतम बुद्ध और महावीर की धरती पर फिर से जागृत हो रही संस्कारशाला है। नही रे , बिहार में चुनाव होने चाला है।
सैकडों वर्षो से कोशी नदी का प्रलयकारी कहर झेलते गाॅव, खेत की छाती पर फटे दरार को देखकर सुने आकाश की तरफ आशा भरी नजरों से निहारते किसान, रोजी रोटी के लिए अन्य राज्यों में प्रति वर्ष पलायन करते हजारों प्रतिभाशाली नौजवान, ऐसी स्थिति में किसी अत्यन्त पिछडे गाॅव में घर घर दस्तक देने पहूंचे श्रीमान। जिस गाॅव में आज तक बैलगाडी भी मुश्किल से पहूंचती है। वहाॅ महंगी गाडी पर आगे तीर और पिछे लालटेन टगां देखकर प्रसन्न हो गया ग्रामप्रधान। वोट देने बाली अभ्यस्त अंगुली से आॅखों को पोछते हुए बोला। हे भगवान साक्षात मुख्यमन्त्री जी गरीब के द्वार, जरूर दाल में कुछ काला है।,,,,,,,अबे ,चुप हो जा , बिहार में चुनाव होने वाला है।

बिहार के प्राथमिक शिक्षा की कपाल क्रिया करनेवाले इन मौकेबाज बंधुओं को बिहार की जनता सबक सिखाए. यहीं कामना है।
जवाब देंहटाएंजातिवाद के विषवृक्ष को संजीवनी प्रचारित करनेवाले एवं धर्मनिरपेक्षता शब्द के अर्थ को दूषित करनेवाले इन छद्म मसीहाओंं को जनता समझ रही है।
बिहार की जनता इन सत्तालोलुप सिद्धांतहीन स्वार्थियों को सबक सिखाए यहीं कामना है..
डॉक्टर अनिल चौबे जी,
तीर पर साधा हुुआ आपका तीर एकदम सही निशाने पर लगा है।
साधुवाद
सुनील कुमार पाण्डेय जी
हटाएंनमन और आभार
आप जिस सहृदयता से ब्लॉग का अवलोकन करते है ! इसके लिए हम आपके कृतग्य है ! हम हमेशा आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया के अभिलाषी है
डॉ. अनिल चौबे जी
जवाब देंहटाएंआपने चलन्त चर्चा मे इस बार चुनाव जैसे संवेदनशील विषय पर अपनी लेखनी चलाई है जिसमे नेताओं और उनके छुटभैये लोगों द्वारा की जाने वाली ऊल जुलूल हरकतों पर ध्यान आकृष्ट किया है जो अक्षरश: सत्य है ।दल कोई भी हो सब जगह दलदल है।इन बरसात मे कुकुरमुत्ते जैसे उग आये राजनेताओं का तो कोई इमान धर्म रह ही नही गया है रहते किसी और के साथ हैं हो जाते किसी और साथ हैं ।चुनावों के पहले इन लोगों का सिद्धान्त कुछ और होता है पर चुनाव बाद जब दल ही बदल लिए तो सिद्धान्त स्वयं ही बदल जाते हैं । रही जनता की बात तो वह अपनी जाति से आगे की सोच ही नही पा रही है।यही कारण है कि जिन लोगों ने शिक्षाव्यवस्था अर्थव्यवस्था आदि सबको नष्ट कर दिये तथा प्रदेश को दशकों तक के लिए पीछे धकेल दिया वे आज फिर उसी जनता की कृपा से चुनावी ताल ठोंक रहे हैं।कामयाब न भी हों तो काम तो बिगाड ही सकते हैं।
अस्तु मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वे आपकी लेखनी को वह शक्ति प्रदान करे जिससे आप जनता की सेवा मे सतत संलग्न रह सकें।
भाई नन्द किशोर तिवारी जी
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भाई आपकी प्रतिक्रिया से काफी उत्साहित हूँ ! आशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आप स्नेह बनायें रखेंगे !
हार्दिक आभार